कविता कैसे पढ़ें  Nios Class 12th chapter 1st

बचपन में आपने बहुत सी कविताएँ याद की होंगी। कई कविताएँ पढ़ी भी होंगी। अब तक आप तरह-तरह की कविताओं से परिचित हो चुके हैं। इन कविताओं को पढ़ते हुए शायद आपके मन में एक प्रश्न बार-बार उठा होगा कि कविता है क्या? वे तत्त्व क्या हैं जो कविता को गद्य से अलग करते हैं? इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ते समय आपने महसूस किया होगा कि कविता में मुख्य रूप से भावों और गद्य में प्रायः विचारों की प्रधानता होती है।

मनुष्य अपने हर अनुभव को किसी-न-किसी प्रकार से अभिव्यक्त करने का प्रयास करता है। कई बार आदमी अपने जिस अनुभव को कहकर अथवा बोलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाता उसे गुनगुनाकर या रंगों के माध्यम से, इशारे से अथवा अभिनय के द्वारा आसानी से प्रकट कर देता है। कविता भाषा का एक ऐसा ही माध्यम है, जिसके द्वारा भावनाएँ व्यक्त की जाती हैं। कविता में सौंदर्य तथा भावना की सहज अभिव्यक्ति होती है, जो पाठक के मन को आसानी से छू जाती है।

उद्देश्य

इस पाठ को देखने के बाद आप 

  • कविता का स्वरूप स्पष्ट कर सकेंगे
  • कविता के महत्त्व का उल्लेख कर सकेंगे
  • कविता के अवयवों का सूचीकरण कर सकेंगे
  •  कविता क्यों तथा कैसे पढ़ी जाए, बता सकेंगे
  • कविता के भावपक्ष तथा शिल्प सौंदर्य की व्याख्या कर सकेंगे।
  • कविता का स्वरूप

आप जानते हैं कि कविता साहित्य की सबसे प्राचीन विधा है। अधिकांश प्राचीन भारतीय ग्रंथों की रचना कविता में ही हुई है। कविता को पारिभाषित करने तथा इसके स्वरूप को पहचानने का प्रयास प्राचीन काल से ही होता रहा है। प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में कहा गया है कि ‘शब्दार्थों सहितौ काव्यम्’ अर्थात् शब्द और अर्थ के सुंदर सामंजस्य को ही काव्य कहा जाता है। इसी परिभाषा को आधार मानकर प्राचीन काव्य शास्त्रियों ने काव्य की आत्मा को ढूँढ़ने का प्रयास किया था। किसी ने रस को कविता की आत्मा माना तो किसी ने ध्वनि को, किसी ने रीति को माना, तो किसी ने वक्रोक्ति को और किसी ने अलंकार को। किंतु बाद में हिंदी साहित्य में कविता की परिभाषा दूसरे ढंग से की जाने लगी।

प्राचीन काल में अलंकारों का बहुत महत्त्व था, परंतु आधुनिक काल में अलंकारहीन कविता की परंपरा चल पड़ी। छंद के भी बंधन नहीं रह गए। छंदहीन कविताओं की झड़ी-सी लग गई। कविता शब्द के गूढ़ अर्थ से अलग होकर सामान्य शब्दों के प्रयोग द्वारा व्यंग्य और विरोध को उजागर करने लगी। उदाहरण के लिए निम्नलिखित काव्य पंक्तियाँ देखिए |

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता की परिभाषा तथा स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है, “हृदय की मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द-विधान करती आई है, उसे कविता कहते हैं।” कविता से मानव भाव की रक्षा होती है। मानो वे पदार्थ या व्यापार विशेष नेत्रों के सामने नाचने लगते हैं। वे मूर्तिमान होते दिखाई देने लगते हैं। उसकी उत्तमता या अनुत्तमता का विवेचन करने में बुद्धि से काम लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती। कविता की प्रेरणा से मनोवेगों का प्रवाह फूट पड़ता है। तात्पर्य यह है कि कविता मनोवेगों को जाग्रत करने का उत्तम साधन है। कुछ इसी तरह की परिभाषा आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी दी है, “कविता का भावतत्त्व लोक प्रचलित अर्थ वह वाक्य है, जिसमें भावावेश हो, कल्पना हो, पदलालित्य हो तथा  प्रयोजन की सीमा समाप्त हो चुकी है |

कविता कैसे पढ़ें Nios Class 12th chapter 1st

इस प्रकार कविता का स्वरूप उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर कुछ इस तरह निर्धारित किया जा सकता है।

  • कविता में भाव तत्त्व की प्रधानता होती है। 
  • कल्पना के मिश्रण से सौंदर्य चित्रण को कविता में सहज और ग्राह्य बनाया जाता है। 
  • कविता में चिंतन अथवा विचारों की जटिलता नहीं होती। 
  • कविता की शब्दावली गद्य से विशिष्ट होती है। इसमें लयात्मकता अनिवार्य रूप से मौजूद होती है तथा शब्दों का संयोजन पाठक के हृदय को सहज ही छू जाता है। कम-से-कम शब्दों में बड़ी-से-बड़ी बात अथवा समस्या को बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित किया जाता है। 
  • कविता में केवल अर्थ ग्रहण कराकर बात को स्पष्ट करने की क्षमता नहीं होती, बल्कि इसके द्वारा बिंब-विधान भी किया जाता है। कविता का बिंब-विधान ही पाठक के मन में कविता के प्रभाव को स्थायित्व प्रदान करता है। बिंब एक प्रकार का शब्द चित्र होता है, जो कविता में ही उपस्थित होता है। इसी कारण कविता का अर्थ अभिधा की अपेक्षा लक्षणा अर्थात् स्थिति की लाक्षणिकता के आधार पर ग्रहण किया जाता है।

कविता का महत्त्व 

आपने अनुभव किया होगा कि यदि कभी आप अपनी बात को ठीक से अभिव्यक्त नहीं कर पाते या अधिक प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करना चाहते हैं और नहीं कर पाते, तब कविता की एक या दो पंक्तियाँ ही आपकी समस्या को आसान बना देती हैं। तुलसीदास की एक चौपाई अथवा बिहारी के एक दोहे का जितना असर सुनने वाले पर होगा, शायद उतना असर एक कहानी सुनाने से न हो। कवि बिहारी द्वारा राजा जयसिंह को भेजे गए एक दोहे का असर यह हुआ था कि वे अपनी नवविवाहिता पत्नी के मोह से मुक्त होकर राज्य की रक्षा के लिए निकल पड़े थे। कविता के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी कहा है कि कविता की प्ररेणा से कार्य में प्रव त्ति बढ़ जाती है।

प्राचीन काल में कविता को मनोरंजन का साधन भी समझा जाता था। दरबारों में कवि कविताएँ सुनाकर राजाओं का मनोरंजन किया करते थे। तब कविता पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाने वाली कोई चीज़ नहीं थी। आप कभी-कभी सोचते होंगे कि कविता भी भला कोई पढ़ने की चीज है? यह मनोरंजन की चीज़ कैसे हो सकती है? इसके न तो शब्द समझ में आते हैं, न इसमें कही गई बात । इससे तो कहानी-उपन्यास अच्छे हैं, जिनमें कही गई बात आसानी से समझ में आ जाती है। उसके लिए कविता की तरह किसी व्याख्या की जरूरत नहीं होती। 

लेकिन इस तरह आपका सोचना ठीक नहीं होगा, क्योंकि कविता सिर्फ मनोरंजन की वस्तु नहीं है। चूंकि कविता कम-से-कम शब्दों और अपनी विशिष्ट भाषा तथा शिल्पसौंदर्य से बातों को स्पष्ट करते हुए चलती है और बहुत-सी बातें उसमें छिपी रहती हैं जिन्हें समझने के लिए उन्हें खोलते रहना आवश्यक होता है। अतः यह गद्य की अपेक्षा कठिन लगती है। लेकिन यह भी तो देखिए कि कविता ही है, जो अधिक देर तक आपको याद रह जाती है। उदाहरण के लिए आप उपयुक्त समय और स्थान पर आसानी से इसका उपयोग कर सकते हैं। अब आप बताइए कि कविता कैसे मनोरंजन की वस्तु हुई? इस संबंध में रामचन्द्र शुक्ल ने भी कहा है कि प्रायः लोग कहते हैं कि कविता का अंतिम उद्देश्य मनोरंजन है, पर मेरी समझ में मनोरंजन उसका अंतिम उद्देश्य नहीं है। कविता कम-से-कम शब्दों में जितनी सरल, सुगढ़ तथा लयात्मक ढंग से अधिक-से-अधिक बातें व्यक्त कर सकती है, उतना गद्य नहीं। इसीलिए कविता अधिक समय तक याद रहती है। लयात्मक होने के कारण इसे कहीं भी गुनगुनाया जा सकता है। दूर सुनसान रास्ते में अकेले चला जा रहा राही कविता गुनगुनाकर अपना मनोरंजन कर लेता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कविता हमारे जीवन की अन्य आवश्यकताओं की तरह ही एक प्रमुख आवश्यकता है। कविता के माध्यम से प्राप्त होनेवाला सुख किसी भी भौतिक सुख से अलग और बेहतर होता है। यहाँ पर आप यह न समझें कि कविता केवल किताबों और अखबारों में छपी हुई ही होती है। बल्कि गीत, गजल, फिल्मी धुन, नज्म, शेर आदि सभी कविता के ही विभिन्न रूप हैं। आप अवश्य ही कुछ-न-कुछ गुनगुनाते रहते होंगे और इसका आनंद लेते होंगे।

कविता के अवयव

कविता के अवयव से हमारा तात्पर्य उन तत्त्वों से है जिनसे मिलकर कविता बनती है, अथवा कविता पढ़ते समय जिन तत्त्वों पर मुख्य रूप से हमारा ध्यान आकर्षित होता है।

काव्य अर्थात् कविता के आरंभिक काल से ही कविता के स्वरूप को समझने का प्रयास विद्वानों ने किया है। प्राचीन काल में भारतीय काव्यशास्त्र के अंतर्गत कविता की तुलना एक सुंदर युवती से की गई है और कहा गया है कि शब्दार्थ जिसका शरीर है, अलंकार जिसके आभूषण हैं, रीति शारीरिक अवयवों का गठन है; गुण, स्वभाव और रस आत्मा है। इन अवयवों के अलावा छंद को भी काव्य का अवयव माना गया है।

इस आधार पर काव्य के छह अवयव बताए गए हैं। किंतु आधुनिक काल तक आते-आते टिप्पणी इन अवयवों के विषय में विद्वानों की मान्यता बदल गई। छंद, रीति, रस और अलंकारों पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया। इसके स्थान पर कविता में कथ्य अर्थात् कही जाने वाली बात और विचार-दृष्टि  अर्थात् कवि के चिंतन को विशेष महत्त्व दिया जाने लगा। किंतु उपर्युक्त अवयवों को पूरी तरह बेकार साबित करके इन्हें कविता से अलग नहीं  अंतरंग उसका बोधपक्ष (भाव पक्ष) है और बहिरंग कलापक्ष (शिल्प सौंदर्य)। दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं| अंतरंग काव्य को उत्कर्षमय बनाते हैं तो बहिरंग कलापक्ष को सार्थकता अनुभवों और तर्कों के बाद व्यक्ति के प्रदान करते हैं। 

भावपक्ष

भावपक्ष अपना आदर्श मानने लगते हैं तो वह विचारधारा का रूप ले लेती है। भावपक्ष कविता का वह पक्ष है जिसमें कवि का चिंतन, उसकी सोच तथा उसका संदेश होता है। इन्हें हम तीन प्रमुख रूपों में देखते हैं-कथ्य, रस तथा विचार-दृष्टि । कथ्य का अर्थ होता है कविता में कही गई बात । कविता के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है, उसका संदेश क्या है तथा कवि की भावनाओं के स्रोत क्या हैं और उन भावनाओं के पीछे कौन-सी बातें छिपी हैं। प्राचीनकाल में रस को कविता की आत्मा माना जाता था और तब कविता में रस का समावेश सप्रयास किया जाता था, किंतु आधुनिक कविता में रस अपने आप कथ्य और भाषा के कौशल से उत्पन्न हो जाते हैं। कविता के अवयवों  में आज भी रस का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

रस कविता के वे तत्त्व होते हैं, जो पाठक के अंदर सोये हुए स्थायी भावों को जगा कर कथ्य को ग्रहण कराने में सहायता पहुँचाते हैं तथा पाठक को भी कवि की मनःस्थिति तक पहुँचाने का प्रयास करते हैं। यहाँ विचार-द ष्टि से मतलब है कि कवि का विचार स्रोत क्या है, वह किसी चिंतन परंपरा से प्रभावित है अथवा नहीं और यदि है तो उसके विचारों में कौन से मूल तत्त्व हैं जो पूर्ण चिंतन-परंपरा से उसके विचारों को जोड़ते अथवा अलग करते हैं | भावपक्ष कविता का आधार और सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष माना जाता है। आप ऊपर पढ़ चुके हैं कि कविता में भावना प्रधान होती है और गद्य में विचार | इसीलिए भावपक्ष कविता का महत्त्वपूर्ण पक्ष होता है। इसे काव्य की आत्मा तक कहा गया है। काव्य के भावपक्ष में कल्पना भी एक प्रमुख अवयव है। जो चीज वास्तव में होती नहीं है किंतु कवि स्मरण कर या अपने सोच के आधार पर उसका चित्र खींच देता है वह कल्पना के द्वारा ही संभव हो पाता है। कई बार आप पढ़ते होंगे कि दो चिड़ियाँ आपस में बात करती दिखाई जाती हैं। चिड़ियों का बोलना या बात करना कवि की कल्पना द्वारा रची गई चीज़ है।

कलापक्ष

कलापक्ष कविता का वह पक्ष होता है जिसके द्वारा कवि अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करता है। इसमें कवि का शिल्पचातुर्य दिखाई देता है। कितने कलात्मक ढंग से और किन वस्तुओं के उत्कृष्ट प्रयोग से कवि ने अपनी बात को अभिव्यक्त करने की कोशिश की है, वह कलापक्ष के अंतर्गत दिखाई देता है। कलापक्ष में भाषा-शैली, छंद, अलंकार आदि प्रमुख तत्त्व होते हैं। आइए, अब हम इन प्रमुख तत्त्वों का अलग-अलग विश्लेषण करते हैं |

भाषा-शैली

आपको ऊपर यह बात बार-बार याद दिलाई गई है कि कविता की भाषा विशिष्ट होती है। कम-से-कम शब्दों और प्रवाहपूर्ण भाषा में कवि अपनी बातें कहता है तो वह कविता का रूप ले लेती है। इस प्रकार कविता के कलापक्ष के अंतर्गत भाषा का बारीकी से अध्ययन किया जाता है क्योंकि इसी के माध्यम से वह बात स्पष्ट होती है, जो कवि ने कही है। भाषा को कवि ने किस कौशल और कलात्मकता के साथ परोसा है, वह कवि की शैली कही जाती है।

छंद

कविता की भाषा प्रवाहमयी होती है। इसलिए कविता को प्राचीन समय में छंदों के माध्यम से रचा जाता था। छंद का अर्थ होता है भाषा के लयात्मक रूप को एक निश्चित ढाँचे में बाँध कर रखना; जैसे-दोहा, चौपाई, सोरठा, सवैया आदि छंदों के भेद हैं। कुछ छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है और कुछ छंदों को वर्गों की संख्या के आधार पर पहचाना जाता है। मात्रा के आधार पर रचे गए छंदों को ‘मात्रिक छंद’ तथा वर्णों के आधार पर रचे गए छंदों को ‘वार्णिक छंद’ कहते हैं। हिंदी कविता में छायावाद युग के बाद छंदों का प्रचलन आवश्यक नहीं रह गया। अब आधुनिक समय में छंदों का प्रयोग कुछ कवि ही करते हैं। इसलिए छंद अब कविता का अवयव नहीं रहा है। आधुनिक कविता का स्वरूप मुक्त छंद हो गया है। अलंकार प्राचीन कविता में भाषा के कौशल से कवि अलंकारों का स जन सप्रयास करते थे किंतु अब कवि अलंकारों पर अधिक ध्यान नहीं देते। लेकिन, कवि के भाषा कौशल तथा कथ्य की भंगिमा के कारण अलंकारों की सहज उत्पत्ति को रोका नहीं जा सकता। आज अलंकार कविता के महत्त्वपूर्ण अंग भले ही न हों, किंतु एक अवयव के रूप में अवश्य माने जाते हैं।

अन्य

आधुनिक कविता में रस, छंद और अलंकारों का जानबूझ कर प्रयोग नहीं किया जाता है, किंतु कुछ ऐसे तत्त्व हैं जिन्हें जानबूझ कर भी कविता में लाने का प्रयास किया जाता है । आधुनिक कविता में उन तत्त्वों का कौशलपूर्वक प्रयोग आसानी से देखा जा सकता है। इन तत्त्वों में मुख्य रूप से प्रतीक और बिंब का उल्लेख किया जा सकता है।

क्या आप जानते हैं कि ‘प्रतीक’ किसे कहते हैं? प्रतीक का अर्थ है किसी वस्तु के माध्यम से किसी अन्य वस्तु अथवा घटना से संबंधित बात का कहा जाना । उदाहरण के लिए आपने सूरदास का भ्रमरगीत सार पढ़ते समय गोपियों द्वारा बार-बार भ्रमर शब्द | का प्रयोग ज़रूर पढ़ा होगा। आप तो जानते हैं कि भ्रमर यानी भौंरे का रंग काला होता है। उद्धव का रंग भी काला था और कृष्ण साँवले । भौंरे का स्वभाव है फूलों पर डोलते हुए रसपान करना । यानी प्रकारांतर से गोपियाँ भौंरे के माध्यम से उद्धव पर व्यंग्य करती | हैं और कुछ हद तक कृष्ण को भी उलाहना दे देती हैं। यहाँ भ्रमर प्रतीक के रूप में आया

उसी प्रकार बिंब का अर्थ होता है परछाई अर्थात् भाषा कौशल के द्वारा किसी स्थिति का | चित्र खींचा जाना । जब बात कहने पर चित्र स्पष्ट होने लगे तो उसे बिंब कहते हैं। कई | बार आप कविता पढ़ते समय ऐसा अनुभव करते होंगे कि जो बात कही जा रही है उससे | कई बातों का आभास मिल रहा है। दूसरी स्थितियों और घटनाओं के भी चित्र आँखों | के सामने उभरते चले जा रहे हैं। इसी भाषा कौशल को बिंब कहते हैं | |

इस प्रकार उपर्युक्त सभी तत्त्व मिलकर कविता की रचना में सहयोग प्रदान करते हैं | अतः कविता को पढ़ते समय इन सभी अवयवों पर ध्यान देना भी आवश्यक हो जाता |

कविता कैसे पढ़ी जाए

कविता के संबंध में इतना कुछ पढ़ लेने के बाद अब आपके मन में विचार आ रहा होगा कि कविता पढ़ी कैसे जाए, ताकि आसानी से समझ में आ जाए और उसमें की गई बात का आशय भी स्पष्ट हो जाए।

कविता को पढ़ने का ढंग गद्य से भिन्न होता है। आपने कवि सम्मेलनों, आकाशवाणी अथवा दूरदर्शन पर कवियों को कविताएँ पढ़ते तो सुना ही होगा। जब कभी कवि स्वयं अपनी कविताएँ सुनाते होंगे, तब वे आपको कठिन नहीं लगती होंगी । बल्कि कई बार तो | कविता सुनने के लिए आप अपने बाकी सारे काम छोड़-छाड़ कर बैठ जाते हैं। इसके पीछे क्या कारण है? एक कविता जो कवि सम्मेलन में सुनाई जा रही है, वह आपको अच्छी लगती है और एक कविता जो किताबों में छपी है वह समझ में नहीं आ रही।

जानते हैं क्यों? इसके पीछे एक प्रमुख कारण होता है- कविता के पढ़ने का ढंग। कविता को पढ़ने का अंदाज़ कविता को कठिन और आसान बनाता है। इसलिए कविता को ठीक से समझने और आनंद प्राप्त करने के लिए जरूरी है कविता को ठीक से यानी उचित लय, तान के साथ पढ़ना । कविता पढ़ने के लिए कुछ सामान्य बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है |

  • कविता पढ़ने का उद्देश्य सिर्फ शब्दों के अर्थ जान लेने, उसकी सामान्य व्याख्या समझ लेने अथवा व्याकरण संबंधी विशेषताओं को जान लेने-भर से पूरा नहीं हो जाता। कविता पढ़ने की सार्थकता तो तब है, जब कवि के द्वारा व्यक्त भावनाओं तक पहुँचकर उसके द्वारा कही गई बात को ग्रहण कर लिया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि यह जानकारी भी प्राप्त की जाए कि कवि ने किस परिस्थिति में अथवा किस वातावरण में कविता लिखी है। जैसे स्वतंत्रता-संग्राम के समय की कविताओं को पढ़ते समय उस समय की ऐतिहासिक प ष्ठभूमि की जानकारी प्राप्त कर ली जाए तो कविता में कही गई बातें अपने आप स्पष्ट होती चली जाएँगी। अथवा मध्यकालीन राजा की प्रशंसा में लिखी गई कविता को पढ़ते समय उसकी ऐतिहासिक प ष्ठभूमि को न समझते हुए आधुनिक परिवेश से जोड़ दिया जाए तो कविता में कही गई बात स्पष्ट नहीं हो पाएगी। इसलिए कविता पढ़ते समय उसके रचनाकाल और रचनात्मक परिवेश की भी जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है।
  • कोई भी कविता पढ़ते समय अगर संभव हो तो कविता के रचयिता अर्थात् कवि का संक्षिप्त परिचय भी प्राप्त कर लिया जाए। इससे कविता में निहित रस, विचारद ष्टि तथा भावनात्मक तत्त्वों को समझने में सहायता मिलती है। इससे भावपक्ष को समझने में भी आसानी होती है।
  • कविता का सस्वर पाठ किया जाना चाहिए। इससे उचित यति-गति, लय आदि से कविता के अर्थ खुलने लगते हैं।पढ़ने की उचित शैली से कविता को समझने में बहुत अंतर आ जाता है। इससे कविता में नाद-सौंदर्य के आ जाने से कथ्य मन में बैठते चले जाते हैं और भाषा संबंधी छोटी-मोटी जटिलताएँ अपने आप स्पष्ट होती चली जाती हैं।
  • कविता के कलापक्ष को समझने के लिए भाषा, छंद, अलंकार तथा प्रतीक-बिंबों की स्पष्ट समझ भी आवश्यक होती है क्योंकि कविता कम-से-कम शब्दों में अपनी बात कह जाती है, अतः कलात्मक समझ के बिना कविता में कही गई बात को विस्तार और गहराई से ग्रहण करना संभव नहीं होता।
  • कविता की भाषा को भी समझने का प्रयास किया जाना चाहिए । कविता की भाषा का अर्थ केवल शब्दों के अर्थ जानना ही नहीं, बल्कि भाषा के माध्यम से चित्रात्मकता तथा भावात्मकता की अभिव्यक्ति का विश्लेषण भी होना चाहिए।
  • संबंधित कविता के समान कोई और पढ़ी हुई कविता ध्यान में आ रही हो तो उससे प्रस्तुत कविता की तुलना की जानी चाहिए तथा दोनों में समानता और असमानता का अध्ययन किया जाना चाहिए।

इस प्रकार कविता पढ़ने के लिए साहित्य तथा अन्य विषयों की भी गहन जानकारी अपेक्षित रहती है। कविता पढ़ते समय यदि उसके सीधे अर्थों की ओर भागने की कोशिश की जाएगी तो कठिनाई पैदा हो जाएगी। कविता पढ़ने का अर्थ है कवि की उस मनःस्थिति तक पहुँचने की कोशिश करना, जिसमें रमकर कवि ने रचना की है। इसे कहते हैं कवि की अनुभूति को पकड़ने की कोशिश करना।