NIOS Class 12th Geography (316) Most Important Questions & Answers

प्रश्न शैल किसे कहते हैं?

उत्तर:-

धरातल की रचना करने वाले सभी पदार्थ शैल कहलाते हैं। अर्थात् जिन पदार्थों से भूपृष्ठ का निर्माण हुआ है, उन्हें शैल या चट्टान कहते हैं। इनमें ग्रेनाइट की भाँति कठोर तथा मिट्टी की भाँति मुलायम सभी प्रकार के तत्त्व सम्मिलित हैं। ये शैलें एक या अनेक खनिजों के मिश्रण से बनी हैं।

प्रश्न शैल के प्रकार

निर्माण के आधार पर शैलों के तीन प्रकार हैं(1) आग्नेय शैल, (2) अवसादी शैल तथा (3) कायान्तरित शैल।

1. आग्नेय शैल

ये शैलें भूपृष्ठ की प्रारम्भिक शैलें हैं। इन्हें प्राथमिक शैलें भी कहते हैं। ये शैलें पृथ्वी के आन्तरिक भाग में पिघले पदार्थों के ठण्डे होने से बनी हैं। भूपृष्ठ के नीचे अति गर्म पिघला पदार्थ भू-पर्पटी के नीचे धीरे-धीरे ठण्डा होता है तो उससे ग्रेनाइट नामक आग्नेय शैल का निर्माण होता है। ग्रेनाइट का उपयोग इमारती पत्थर के रूप में होता है। कभी-कभी गर्म पिघला पदार्थ किसी छिद्र या दरार से बाहर निकलकर भूपृष्ठ पर फैलता है तो वह बहुत जन्दी ठण्डा होकर कठोर हो जाता है। इस प्रकार सभी आग्नेय शैल को बेसाल्ट कहते हैं। यह शैल गहरे काले रंग की, कठोर तथा भारी होती है। सड़क बनाने में इसका उपयोग किया जाता है ।

2. अवसादी शैल

जल, वायु एवं हिम द्वारा बहाकर लाये गये कंकड़, पत्थरों के छोटे-छोटे कण, जीवाश्म आदि भू-भाग या समुद्रतल में परतों के रूप में जमा होते जाते हैं। इस प्रकार जमे हुए पदार्थ को ‘अवसाद’ कहा जाता है। यही अवसाद की परतें गर्मी तथा दबाव के कारण कठोर हो जाती हैं तो उन्हें अवसादी या परतदार शैल कहा जाता है। इनके निर्माण में जल की प्रमुख भूमिका होने से इन्हें जलज चट्टान भी कहते हैं। बलुआ पत्थर, चूने का पत्थर, चिकनी मिट्टी, कोयला आदि इसके उदाहरण हैं। इनमें जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों के अवशेष भी पाये जाते हैं। पृथ्वी के ऊपरी धरातल का लगभग 80 प्रतिशत भाग अवसादी चट्टानों से ढ़का है।

3. कायान्तरित शैल

जब आग्नेय एवं अवसादी शैलों के रूप, रंग और गुण में आन्तरिक ताप तथा दबाव के कारण पूर्ण रूप से परिवर्तन हो जाता है तो उन्हें कायान्तरित या परिवर्तित शैलें कहा जाता है। इसप्रकार चूने के पत्थर से संगमरमर, बलुआ पत्थर से क्वार्ट्जाइट, चिकनी मिट्टी से स्लेट तथा कोयले से ग्रेफाइट और हीरा बनते हैं। ये शैलें अधिक कठोर तथा रवेदार होती हैं।

What do you mean by shell?

All the substances that make up the surface are called rocks. That is, the substances from which the earth’s surface has been formed are called rocks or rocks. These include all types of elements hard like granite and soft like clay. These rocks are composed of a mixture of one or more minerals.

Type of shell

On the basis of formation, there are three types of rocks – (1) igneous rock, (2) sedimentary rock and (3) metamorphic rock.

1. Igneous Rock

These rocks are the earliest rocks of the earth’s surface. These are also called primary rocks. These rocks are formed by the cooling of molten materials in the interior of the Earth. The very hot molten material below the earth’s surface cools slowly under the earth’s crust, then it forms an igneous rock called granite. Granite is used as a building stone. Sometimes hot molten material comes out of a hole or crack and spreads on the earth’s surface, then it cools very quickly and becomes hard. Thus all igneous rocks are called basalt. This rock is dark black in colour, hard and heavy. It is used to build roads.

2. Sedimentary rock

The pebbles, small particles of stones, fossils, etc., brought by water, wind and snow, get deposited in the form of layers in the land or sea level. The material thus frozen is called ‘depression’. These sedimentary layers become hard due to heat and pressure, so they are called sedimentary or flaky rocks. Due to the major role of water in their formation, they are also called hydrological rocks. Examples are sandstone, limestone, clay, coal etc. The remains of animals and plants are also found in these. About 80 percent of the Earth’s upper surface is covered by sedimentary rocks.

3. Metamorphic Rock

When the form, color and properties of igneous and sedimentary rocks undergo a complete change due to internal heat and pressure, they are called metamorphic or metamorphic rocks. Thus marble is made from limestone, quartzite from sandstone, slate from clay and graphite and diamond from coal. These rocks are more hard and fibrous.

प्रश्न अपक्षय के प्रकार

भौतिक अपक्षय

रासायनिक अपक्षय

 ➛ जैविक अपक्षय

➛ भौतिक अपक्षय

संघटन में रासायनिक परिवर्तन के बिना शैलों का छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटना भौतिक अपक्षय कहलाता है। भौतिक अपक्षय विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों में अलग-अलग ढंग से होता है। इनके कुछ उदाहरण निम्न है- पिंड -विच्छेदन, अपशल्कन, तुषारी अपक्षय आदि |

पिंड विच्छेदन

शैलों के जल्दी-जल्दी फैलने और सिकुड़ने से उनमें जोड़ और दरारें पड़ जाती हैं। परिणामतः वे छोटे-छोटे पिंडों में टूट जाती हैं। यह प्रक्रिया पिंड विच्छेदन कहलाती है।

अपशल्कन

अपक्षय की वह प्रक्रिया जिसमें तापमान की भिन्नता के कारण शैलों की बाहरी परतें प्याज के छिलकों की तरह उतर जाती हैं, अपशल्कन कहलाती हैं।

तुषारी अपक्षय

बहुत ठंडे प्रदेशों में दरारों और जोड़ों में भरे जल के जमने से उनका टूटना तुषारी अपक्षय कहलाता है।

Types of weathering

We can recognize three types of weathering?

1. Physical Weathering

2. Chemcial weathering

3. Biotic weathering

Disintegration of rocks into smaller fragments without any change in their chemical composition is called mechanical weathering.

Physical weathering takes place in different ways in different types of areas. They have been explained here with examples.

Block disintegration

The rapid heating and cooling of the rocks creates a series of joints and cracks which lends to breaking up into smaller blocks. This process is known as block disintegration.

Exfoliation

A weathering process by which the outer layers of the rock peel out in concentric cells due to difference of temperature in the outer layers is called exfoliation.

Action

Breaking up of rocks due to freezing of water in the rock joints and cracks, in very cold regions, is called frost action.

रासायनिक अपक्षय

रासायनिक प्रक्रिया द्वारा जल और वायुमंडलीय गैसों की मदद से शैलों के अपघटन को रासायनिक अपक्षय कहते हैं।

रासायनिक अपक्षय में मुख्य रूप से चार प्रक्रियाएँ होती हैं। (क) ऑक्सीकरण (ख) कार्बोनेटीकरण (ग) जलयोजन (घ) घोलन

प्रश्न मृदा अपरदन किसे करते है ?

प्राकृतिक कारकों (जल, पवन आदि) द्वारा मृदा के पुनः स्थापन से अधिक दर से मृदा के निष्कासन को मृदा अपरदन कहते हैं।

प्रश्न मृदा अपरदन के प्रकार

मृदा अपरदन मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है- पवन अपरदन, परतदार अपरदन, नदिका अपरदन तथा अवनालिका अपरदन।

(i) पवन अपरदन पवन बहुत बड़ी मात्रा में बालू और मृदा के महीन कणों को मरूस्थलीय प्रदेशों से उड़ाकर निकटवर्ती खेती वाली भूमियों पर बिछाते रहते हैं। इस प्रकार ये इन भूमियों की उर्वरता को नष्ट करते हैं। इस प्रकार के अपरदन को पवन अपरदन कहते हैं।

(ii) परतदार अपरदन – जल जब एक परत के रूप में बहता है तो मृदा की पतली परतों को अपने साथ बहा ले जाता है। इस प्रकार के अपरदन को परतदार अपरदन कहते हैं। इस प्रकार का अपरदन सामान्यतः नदी घाटियों तथा बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में होता है। इस प्रकार के अपरदन से लंबे समय में मृदा की ऊपरी परत हट जाती है और मृदा अनुपजाऊ हो जाती है।

(iii) नदिका अपरदन – धरातलीय पदार्थ सामान्यतः मृदा का बहते हुए जल के द्वारा निष्कासन नदिका अपरदन कहलाता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत बहुत सी छुद्र सरिताएँ वर्षा ऋतु में बन जाती है तथा इनकी गहराई केवल कुछ सेंटीमीटर होती है। ये अपरदन भी करती है। इसे ही नदिका अपरदन के नाम से जानते है |

(iv) अवनालिका अपरदन – जल ढाल की ओर जब नालियों में बहता है तो वह मृदा कणों को उखाड़ कर बहा ले जाता हैं इससे अवनालिकाएँ बन जाती हैं। ये धीरे-धीरे गहरी और चौड़ी होकर विस्तृत क्षेत्रों में फैल जाती है। इस प्रकार के अपरदन को अवनालिका अपरदन कहते हैं।

प्रश्न मृदा संरक्षण के उपाय-

फसल चक्र का उपयोग करना चाहिये।

प्रत्येक स्थान पर वृक्षारोपण करना चाहिये।

मिट्टी के रासायनिक परीक्षण अनिवार्य रूप से किया जायें।

वृक्षों की कटाई एवं अनियंत्रित पशुचारण पर रोक लगाई जायें।

तटबांध का निर्माण किया जाना चाहिये।

भूमि के ढ़ालों पर समोच्चरेखीय जुताई की जानी चाहिये।

उर्वरकों एवं खाद का समुचित प्रयोग किया जाना चाहियें।

What is called soil erosion?

The removal of soil at a greater rate than its replacement by natural agencies (water, wind etc.) is known as soil erosion.

Type of Soil Erosion

 Soil erosion is of four types: wind erosion, sheet erosion, rill erosion and gully erosion.

(i) Wind Erosion

Winds carry away vast quantity of fine soil particles and sand from deserts and spread it over adjoining cultivated land and thus destroy their fertility. This type of erosion is known as wind erosion.

(ii) Sheet Erosion

Water when moves as a sheet takes away thin layers of soil. This type of erosion is called sheet erosion. Such type of erosion is most common along the river beds and areas affected by floods. In the long run, the soil is completely exhausted due to removal of top soil and becomes infertile.

(iii) Rill Erosion

The removal of surface material usually soil, by the action of running water. The processes create numerous tiny channels (rills) a few centimeters in depth, most of which carry water only during storms.

(iv) Gully Erosion

When water moves as a channel down the slope, it scoops out the soil and forms gullies which gradually multiply and in the long run spread over a wide area. This type of erosion is called gully erosion.

Soil Conservation Measures-

Crop rotation should be used.

Plantation should be done at every place.

Chemical testing of soil should be done compulsorily.

Stop cutting of trees and uncontrolled pastoralism.

Embankment should be constructed.

Contour plowing should be done on the slopes of the land.

Proper use of fertilizers and manure should be done.

प्रश्न एअरी और प्रैट के विचारों में अन्तर ?

उत्तर:-

प्रश्न एअरी के विचार

भूपर्पटी के पदार्थों में एक समान घनत्व।

भिन्न-भिन्न गहराई, जिस तक जड़ पहुँचती है।

पर्वतों के नीचे गहरी जड़ और मैदानों के नीचे छोटी जड़।

प्रश्न प्रैट के विचार

भूपर्पटी के पदार्थों के घनत्व में भिन्नता।

एक समान गहराई, जिस तक भूपर्पटी का पदार्थ पहुँचता है।

किसी प्रकार की जड़ नहीं परन्तु क्षतिपूरक स्तर का होना।

Differences between the views of Airy and Pratt

Views of Airy

Uniform density of crustal material.

Varying depth upto which root penetrates.

Deeper root below the mountain and smaller beneath plain.

Views of Pratt

Varying density of crustal material.

Uniform depth upto which crustal material reaches.

No root formation, but a level of Compensation.

प्रश्न गर्म जल स्त्रोत और औए गीजर के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।

शैलों की दरारों अथवा छिद्रों से द्रव चालित दबाव के कारण भूमिगत जल के स्वतः धरातल पर निकलने को जल स्रोत कहते हैं।

ये स्रोत गर्म या ठंडे जल के हो सकते हैं।

जिन गर्म जल स्रोतों का जल बडे वेग से फव्वारे की भांति बाहर आता है. उनको गीजर कहते हैं।

Differentiate between hot springs and geyser.

The surface outflow of ground water through an opening in a rock under hydraulic pressure is called a spring.

They can be hot or cold water springs.

A geyser is a hot spring in which water is forced out by steam pressure at intervals.

प्रश्न निक्षेपण किसे करते है |

जब नदी पहाड़ों से निकलकर मैदानी भाग में आती है तो इसका ढाल मंद हो जाता है। इससे नदी में भार ढोने की शक्ति कम हो जाती है। नदी की शक्ति कम होने से परिवहन में बाधा पड़ती है। परिणामस्वरूप इसके भार का कुछ अंश निक्षेपित होने लगता है। इस क्रिया को निक्षेपण कहते हैं। निक्षेपण क्रिया नदी की ढाल मंद होने से या धारा का वेग कम होने से या जल की मात्रा घटने से होती है। निक्षेपण क्रिया सामान्यतः मैदानों में या नीचे क्षेत्रों में होती है। जब नदी किसी झील या समुद्र में मिलती हैं तो वहाँ सारा भार (अवसाद) जमा कर देती है।

What is deposition?

When the stream comes down from hills to plain area, its slope becomes gentle. This reduces the energy of the stream. The decrease in energy hampers transportation; as a result part of its load starts settling down. This activity is known as deposition. Deposition takes place either due to decrease in slope or due to fall in the volume or velocity of river water. Deposition takes place usually in plains and low lying areas. When the river joins a lake or sea, the whole of its load is deposited.

प्रश्न नदी के मार्ग को कितने भागों में बांटा जा सकता है

नदी के मार्ग को तीन भागों में बांटा जा सकता है :

ऊपरी मार्ग या युवावस्था

मध्य मार्ग या प्रौढ़ावस्था

निचला मार्ग या व द्धावस्था

Into how many parts can the course of a river be divided?

The course of a river is divided into three sections:

(i) The upper course or the stage of youth

(ii) The middle course or the stage of maturity

(iii) The lower course or the stage of old age.

प्रश्न V’आकृति की घाटी किससे करते है?

नदी के ऊपरी मार्ग में अनेक स्थलाक तियों का निर्माण होता है जैसे महाखड्ड, केनयन, ‘V’ आक ति की घाटी, क्षिप्रिकाएँ, बड़ी क्षिप्रिकाएँ, सोपान जलप्रपात, जलप्रपात आदि।

What is the V-shaped valley made of?

The land features carved by a river in its upper course are gorges, canyons, ‘V’ shaped valleys, rapids, cataracts, and waterfalls.

प्रश्न डेल्टा के निर्माण की दशाएं की प्रक्रिया को समझाइये

डेल्टा के निर्माण में निम्नलिखित दशाएं सहायक होती हैं।

नदी के ऊपरी मार्ग में ऊर्ध्वाधर तथा पार्श्विक अपघर्षण के द्वारा बहुत बड़ी मात्रा में अवसादों का आना।

ज्वार-भाटे से मुक्त शान्त तटीय क्षेत्र।

डेल्टा के निर्माण क्षेत्र में उथले समुद्र का होना।

मुहाने पर तेज गति वाली समुद्री धारा का अभाव ताकि अवसाद बहा न दिया जाय।

Explain the process of formation of delta.

The following conditions favour the formation of deltas:

(1) Active vertical and lateral erosion in the upper course of the river to supply large amount of sediments;

(2) Tideless, sheltered coast;

(3) Shallow sea, adjoining the delta and

(4) No strong current at the river mouth which may wash away the sediments.

प्रश्न उत्सुत कूप किसे करते है ?

उत्तर :- यह कुआँ जिससे भूमिगत जल अपने दबाव के कारण स्वतः धरातल पर निकलने लगता है, उत्सुत कूप कहलाता है।

What is artesian well?

A well in which water flows out automatically under its own pressure is called an artesian well.

प्रश्न हिमानी का निक्षेपण कार्य को बताइए ?

उत्तर:- जब हिमानी पिघलती है या पीछे हटती है, तब वह अपने भार को घाटी के विभिन्न भागों | में जमा कर देती है। इस प्रकार निक्षेपित मलवे को हिमोढ़ कहते हैं। घाटी में स्थिति  के आधार पर हिमोढ़ चार प्रकार के होते हैं –

(i) अन्तस्थ हिमोढ़, (ii) पार्श्विक हिमोढ़, (iii) मध्यस्थ हिमोढ़, और (iv) तलस्थ हिमोढ़ |

 (i) अन्तस्थ हिमोढ़:- जब हिमानी पिघलती है, तब मलबा घाटी हिमानी के अंतिम भाग में जमा हो जाता है और कटक जैसी स्थलाक ति बन जाती है। इसे अन्तस्थ हिमोढ़ कहते हैं। हिमोढ़ पदार्थों में महीन चीका मिट्टी से लेकर बड़े-बड़े नुकीले शैलखंड भी होते हैं।

(ii) पार्श्विक हिमोढ़:- हिमानी के दोनों किनारों पर जो हिमोढ़ जमा होते हैं, उन्हें पार्श्विक हिमोढ़ कहते हैं।

(iii) मध्यस्थ हिमोढ़:- जब दो हिमानियाँ मिलती हैं, तो प्रत्येक हिमानी का एक-एक पार्श्विक हिमोढ़ भी आपस में मिल जाता है। इस प्रकार मिलन स्थल पर बने हिमोढ़ को मध्यस्थ हिमोढ़ कहते हैं।

(iv) तलस्थ हिमोढ़:- ये वे निक्षेप हैं, जो उन क्षेत्रों में जमा हो गये थे, जो कभी हिमानियों से ढके थे। तलस्थ हिमोढ़ तभी दिखाई पड़ते हैं, जब हिमानियों का बर्फ पिघल कर जल के रूप में बह जाता है।

What is the deposition function of glacier?

When the glacier melts or retreats, it deposits its load in different parts. The debris thus deposited are called moraines. Depending upon their location in the valley. moraines are of four types:- (i) terminal moraine, (ii) lateral moraine, (iii) medial moraine and (iv) ground moraine.

(i) Terminal Moraine : When the glacier melts, the debris are deposited at the end of the valley glacier in the form of a ridge. It is called terminal moraine. Morainic material ranges from fine clay to large angular boulders.

(ii) Lateral moraine: The moraine which is deposited on either side of a glacier is called lateral moraine.

(iii) Medial moraine: When two glaciers join each other their lateral moraines also join. Moraines thus formed on the confluence of two glaciers are called medial moraines.

(iv) Ground moraine: It consists of deposits left behind in areas once covered by glaciers. It is seen only after the glacial ice has disappeared by melting.

प्रश्न ‘U’ आकृति घाटी किसे कहते है :


नदी की तरह हिमानी कोई नई घाटी नहीं बनाती, अपितु पहले से विद्यमान घाटी को और अधिक गहरा, चौड़ा और सपाट कर देती है। इस प्रक्रिया में हिमानी घाटी के किनारों को घिसकर चौड़ा कर देती है। इस प्रकार बनी घाटी ‘U’ अक्षर के समान होती है। इसलिए इसे ‘U’ आकार की घाटी कहते हैं। ऐसी घाटी अपेक्षाक त सीधी होती है, इसका तल चौरस और किनारे लगभग खड़े ढाल वाले होते हैं।

What is called ‘U’ shaped valley?

The glacier does not carve a new valley like a river but deepens and widens a Preexisting valley by smoothening away the irregularities. In this process the glacier broadens the sides of the valley. The shape of the valley formed in this manner resembles the letter ‘U’. It is therefore called a ‘U’ – shaped valley. Such a valley is relatively straight, has a flat floor and nearly vertical sides.

प्रश्न ‘नाइट्रोजन चक्र का आरेख बनाइए।

Prepare the diagram of Nitrogen Cycle.

प्रश्न कार्बन चक्र का चित्र की सहायता से वर्णन कीजिए।

Describe the carbon cycle with the help of graphics.

प्रश्न आक्सीजन चक्र वायुमंडल में किस प्रकार कार्य करता है? समझाइए।

ऑक्सीजन चक्र

ऑक्सीजन चक्र प्रकृति के सबसे महत्वपूर्ण जैव-भू-रासायनिक चक्रों में से एक है, जिसमें पर्यावरण में ऑक्सीजन का उत्पादन, खपत और उपयोग शामिल है।

स्थलमंडल, जीवमंडल और वायुमंडल के माध्यम से ऑक्सीजन की गति एक जैविक प्रक्रिया है।

प्रश्न वायुमंडल में ऑक्सीजन

कार्बन के बाद ग्रह पर सबसे प्रचुर तत्वों में से एक ऑक्सीजन है। ऑक्सीजन हमारे वायुमंडल के बारे में बनाती है।

प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के दौरान, पौधे उप-उत्पाद के रूप में वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। श्वसन के दौरान, पौधे और जानवर दोनों ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।

श्वसन के दौरान पौधों और जानवरों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ा जाता है, जिसे बाद में प्रकाश संश्लेषण के दौरान पौधे द्वारा उपयोग किया जाता है।

प्रश्न ऑक्सीजन चक्र के तीन चरण इस प्रकार हैं:

प्रथम चरण:

प्रकाश संश्लेषण वह क्रियाविधि है जिसके द्वारा सभी हरे पौधे भोजन बनाते हैं।

हरे पौधे प्रकाश संश्लेषण के दौरान ग्लूकोज बनाने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड, धूप, क्लोरोफिल और पानी का उपयोग करते हैं।

पौधे इस प्रक्रिया के उप-उत्पाद के रूप में ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं।

चरण 2:

श्वसन के लिए सभी एरोबिक जीव मुक्त ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं।

शरीर विभिन्न प्रकार की चयापचय प्रतिक्रियाओं के लिए ऑक्सीजन का उपयोग करता है।

पशु प्रकृति द्वारा बनाई गई ऑक्सीजन में सांस लेते हैं, जो उनके विकास में सहायता करती है।

चरण 3:

जानवर कार्बन डाइऑक्साइड को सांस लेते हैं, जिसे वापस वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है और प्रकाश संश्लेषण के दौरान पौधों द्वारा फिर से उपयोग किया जाता है।

वायुमंडलीय ऑक्सीजन अब संतुलन में है

How the oxygen cycle functions in the atmosphere? Explain

Oxygen Cycle

The Oxygen Cycle is one of nature’s most significant biogeochemical cycles, including the production, consumption, and usage of oxygen in the environment.

The movement of oxygen through the lithosphere, biosphere, and atmosphere is a biological process.

Oxygen in the Atmosphere

One of the most abundant elements on the planet, after carbon, is oxygen. Oxygen makes up about our atmosphere.

During the process of photosynthesis, plants release oxygen into the atmosphere as a by-product. During respiration, both plants and animals use oxygen.

Carbon dioxide is released by plants and animals during respiration, which is then used up by the plant during photosynthesis.

The three stages of the oxygen cycle are as follows:

Stage 1:

Photosynthesis is the mechanism through which all green plants make food.

Green plants employ carbon dioxide, sunshine, chlorophyll, and water to make glucose during photosynthesis.

Plants produce oxygen as a by-product of this process.

Stage 2:

For respiration, all aerobic organisms utilize free oxygen.

The body uses oxygen for a variety of metabolic reactions.

Animals breathe in the oxygen created by nature, which aids in their development.

Stage 3:

Animals breathe out carbon dioxide, which is released back into the atmosphere and utilized again by plants during photosynthesis.

Atmospheric oxygen is now in balance.

प्रश्न वायुमण्डल का महत्व

ऑक्सीजन प्राणी जगत के लिए अति महत्वपूर्ण है।

कार्बन डाई आक्साइड गैस पेड़-पौधों के लिए अधिक उपयोगी है।

वायुमण्डल में विद्यमान धूलकण वर्षण के लिए अनुकूल दशाएं पैदा करते हैं।

वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा घटती-बढती रहती है और प्रत्यक्ष रूप से पादप और जीव जगत को प्रभावित करती है।

ओजोन सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से सभी प्रकार के जीवन की रक्षा करती है।

Importance of the Atmosphere:

(i) Oxygen is very important for the living beings.

(ii) Carbon dioxide is very useful for the plants.

(iii) Dust particles present in the atmosphere create suitable conditions for the precipitation.

(iv) The amount of water vapour in the atmosphere goes on changing and directly

affects the plants and living beings.

(v) Ozone protects all kinds of life on the earth from the harmful ultra violet rays of the sun.

प्रश्न वायुमंडल किसे कहते हैं|

उत्तर:- पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए, रंगहीन, गंधहीन, एवं स्वादहीन गैसों का आवरण ‘वायुमण्डल’ Atmosphere कहलाता है। दुसरे शब्दो में वायु का वह आवरण जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए है, उसे हम वायुमण्डल कहते है। पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिसके वायुमंडल में प्राणदायिनी ऑक्सीजन गैस पाया जाता है।

वायुमण्डल को निम्नलिखित 5 परतों में बाँटा गया है:

(क) क्षोभमण्डल, (ख) समतापमण्डल, (ग) मध्यमण्डल, (घ) आयनमण्डल (ड) बहिर्मण्डल

(क) क्षोभमण्डल

यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है।

  इस परत की ऊँचाई विषुवत वृत्त पर लगभग 18 कि.मी. और ध्रुवों पर इसकी ऊँचाई केवल 8 कि.मी. है। ऊँचाई की विभिन्नता का मुख्य कारण विषुवत वृत्त पर तेज संवहनीय धाराओं का चलना है, जो धरातल की ऊष्मा को अधिक ऊँचाई तक ले जाती हैं।

वायुमण्डल की यह सबसे महत्वपूर्ण परत है, क्योंकि इसी परत में सभी प्रकार के मौसमी परिवर्तन होते रहते हैं। इन परिवर्तनों के कारण पृथ्वी पर जीव-जगत की उत्पत्ति एवं विकास होता है। इस भाग में वायु कभी शान्त नहीं रहती। इसीलिए इस मण्डल को परिवर्तन मण्डल या क्षोभमण्डल भी कहते हैं।

  इस मण्डल की ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान में कमी होती जाती है तथा प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर औसत 1° सेल्सियस तापमान घटता जाता है। इसे ही ‘सामान्य ताप हास दर’ कहा जाता है।

  क्षोभमण्डल की ऊपरी सीमा से लगे क्षेत्र को क्षोभसीमा कहते हैं। यह एक संक्रमण क्षेत्र है। जिसमें क्षोभमण्डल और समतापमण्डल की मिली-जुली विशेषताएँ पाई जाती है।

(ख) समतापमण्डल

यह क्षोभमण्डल के ऊपर की परत है।

इसकी धरातल से ऊँचाई लगभग 50 कि.मी. है। इसकी औसतन मोटाई लगभग  40 कि.मी. है।

इस परत के निचले भाग में 20 कि.मी. तक की ऊँचाई तक तापमान लगभग

समान रहता है। इसके बाद ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। इस परत के ऊपरी भाग में ओजोन के होने के कारण ही तापमान बढ़ता है।

इस मण्डल में किसी प्रकार की मौसम की घटनाएं नहीं घटती है। यहाँ पर वायु क्षैतिजीय चलती है। इसी कारण यह परत वायुयानों की उड़ानों के लिए आदर्श मानी जाती है।

(ग) मध्यमण्डल

(i) समतापमण्डल के ऊपर वायुमण्डल की तीसरी परत का विस्तार है। इसे मध्यमण्डल कहते हैं।

(ii) इस परत की ऊँचाई धरातल से 80 कि.मी. तक है। इसकी मोटाई 30 किलोमीटर है।

(घ) आयनमण्डल

(i) यह वायुमण्डल की चौथी परत है। यह मध्यमण्डल के ऊपर स्थित है।

(ii) इस परत की ऊँचाई धरातल से 400 कि.मी. तक है। इस मण्डल की मोटाई लगभग 300 कि.मी. है। इस मण्डल में तापमान ऊँचाई के साथ पुनः बढ़ता जाता है।

 (iv) इस मण्डल में वायु में विद्युत आवेशित तरंगें प्रवाहित होती हैं और रेडियो तरंगें

इसी मण्डल से परावर्तित होकर पुनः पृथ्वी पर लौट आती हैं जिससे रेडियो प्रसारण संभव होता है।

What is the atmosphere called?

The colorless, odorless, and tasteless gases that surround the earth are called ‘atmosphere’. In other words, the cover of air that surrounds the earth is called the atmosphere. Earth is the only planet in whose atmosphere the life-giving oxygen gas is found.

The atmosphere is divided into the following 5 layers

(a) Troposphere (d) Ionosphere

(b) Stratosphere (e) Exosphere

(c) Mesosphere

(a) TROPOPHERE :-

(i) This is the lowest layer of the atmosphere.

(ii) The height of this layer is about 18 kms on the equator and 8 kms on the poles. The main reason of higher height at the equator is due to presence of hot convection currents that push the gases upward.

(iii) This is the most important layer of the atmosphere because all kinds of weather changes take place only in this layer. Due to these changes development of living world take place on the earth. The air never remains static in this layer. Therefore this layer is called changing sphere or troposphere.

(iv) The environmental temperature decreases with increasing height of atmosphere. It decreases at the rate of 10C at the height of 165 metre. This is called Normal lapse rate.

(v) The upper limit of the troposphere is called tropopause. This is a transitional zone. In this zone characteristics of both the troposphere and ionosphere are found.

(b) STRATOSPHERE

(i) This layer is above the troposphere.

(ii) This layer is spread upto the height of 50 kms from the Earth’s surface. Its average extent 40 kms.

(iii) The temperature remains almost the same in the lower part of this layer upto the height of 20 kms. After this the temperature increases slowly with the increase in the height. The temperature increases due to the presence of ozone gas in the upper part of this layer.

(iv) Weather related incidents do not take place in this layer. The air blows horizontally here. Therefore this layer is considered ideal for flying of aircrafts.

(c) MESOSPHERE

(i) It is the third layer of the atmosphere spreading over stratosphere.

(ii) It spreads upto the height of 80 kms. from the surface of the earth. It’s extent is 30 kms.

(iii) Temperature goes on decreasing and drops upto – 1000C.

(iv) ‘Meteors’ or falling stars occur in this layer.

(d) IONOSPHERE

(i) This is the fourth layer of the atmosphere. It is located above the mesosphere.

(ii) This layer spreads upto the height of 400 kms. from the surface of the earth.

The width of this layer is about 300 kms.

(iii) The temperature starts increasing again with increasing height in this layer.

(iv) Electrically charged currents flows in the air in this sphere. Radio waves are

reflected back on the earth from this sphere and due to this radio broadcasting

has become possible.

(e) EXOSPHERE

(i) This is the last layer of the atmosphere located above ionosphere and extends to beyond 400 km above the earth.

(ii) Gases are very sparse in this sphere due to the lack of gravitational force. Therefore, the density of air is very less here.

प्रश्न वायुमण्डलीय गैसों की चक्रीय प्रक्रिया

वायुमण्डल में पाई जाने वाली प्रमुख गैसों का चक्रण नीचे दिया गया है

(क) कार्बन चक्र

(ख) ऑक्सीजन चक्र

(ग) कार्बन-डाई-आक्साईड चक्र

(क) कार्बन चक्र

1. वायुमण्डल में कार्बन तत्व कार्बन-डाई-आक्साईड गैस के रूप में विद्यमान है। समस्त जीवों के कार्बन का स्रोत वायुमण्डल है।

2. हरे पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन-डाई-आक्साईड प्राप्त करते हैं। जिसका उपयोग सूर्य प्रकाश के माध्यम से भोजन निर्माण हेतु करते हैं। जिसे प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। इस क्रिया द्वारा पेड़-पौधे ‘कार्बोहाइड्रेट’ भोजन के रूप में तैयार करते हैं। इनके द्वारा निर्मित कार्बोहाइड्रेट का उपयोग जीव जन्तु अपने भोजन के लिए करते हैं।

3. पृथ्वी पर कार्बन-डाई-आक्साईड गैस जल-भण्डारों में घुल जाती है और चूने के जमाव के रूप में इकट्ठी हो जाती है। चूने के पत्थर के अपघटन के बाद कार्बन-डाई-आक्साईड वायुमण्डल में पुनः पहुँच जाती है। इस प्रक्रिया को कार्बनीकरण कहते हैं। इस प्रकार वायुमण्डल और पृथ्वी के जलभण्डारों के बीच कार्बन-डाई-आक्साईड का आदान-प्रदान होता रहता है।

4. पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तुओं के श्वसन के द्वारा, पौधों और जीव-जन्तुओं के अपघटकों द्वारा, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईधन के जलने से उत्पन्न कार्बन-डाई-आक्साईड गैस वायुमण्डल में वापस चली जाती है।

(ख) ऑक्सीजन चक्र

1. ऑक्सीजन गैस वायुमण्डल में लगभग 21% है और समस्त जीव-जन्तु वायुमण्डल में उपस्थित ऑक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं।

2. ईंधन के रूप में लकड़ी, कोयला, पेट्रोलियम, गैस आदि के जलने के लिए ऑक्सीजन आवश्यक है और इसके जलने के बाद कार्बन-डाई-आक्साइड गैस उत्पन्न होती है।

3. वायुमण्डल में ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत पेड़-पौधे हैं। जितने अधिक पेड़ पौधे होंगे उतनी ही अधिक ऑक्सीजन मिलेगी।

 4. हरे पेड़-पौधे में प्रकाश संश्लेषण के द्वारा उत्पन्न ऑक्सीजन वायुमण्डल में वापस चली जाती है। इस प्रकार ऑक्सीजन चक्र की प्रक्रिया चलती रहती है।

Cyclic process of atmospheric gases

The cycle of main gases found in the atmosphere is given below:-

(a) Carbon cycle

(b) Oxygen cycle

(c) Carbon dioxide cycle

(a) CARBON CYCLE

1. The element of carbon is present in the atmosphere in the form of carbon dioxide. The source of carbon for all living beings is atmosphere.

2. Green plants receive carbon dioxide from the atmosphere which is used for making food with the help of the sun light. This is called photosynthesis. By this process the plants create ‘carbohydrates’ in the form of food. Carbohydrates thus, produced by plants are used as a food by all Living beings.

3. Carbon dioxide gets dissolved in the water bodies and gets collected in the form of lime on the earth. After dissolution of lime stone, carbon dioxide again reaches in the atmosphere. This process is called carbonization. In this way carbon dioxide goes on moving between the atmosphere and waterbodies of the earth.

4. Carbon dioxide produced by breathing of plants and animals, disintegration of plants and animals and by burning fossil fuels like coal, petroleum and natural gas again returns back to the atmosphere.

b) OXYGEN CYCLE

1. The amount of oxygen in the atmosphere is about 21% and all living beings use oxygen present in the atmosphere for breathing.

2. For the burning of fuels like wood, coal, gas etc. oxygen is essential and carbon dioxide gas is produced by their burning.

3. The main sources of oxygen in the atmosphere are plants and trees. Higher the number of trees and plants, the availability of oxygen will be more.

4. Oxygen produced through photosynthesis by the green plants goes back to the atmosphere. In this way the process of oxygen cycle goes on continuously.

It has been possible because of the balance between insolation and terrestrial radiation. This balance is termed as a heat budget of the earth.

प्रश्न सूर्यातप को प्रभावित करने वाले कारक

सूर्यातप की मात्रा को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं:-

 (i) सूर्य की किरणों का आपतन-कोण

 (ii) दिन की अवधि

(iii) वायुमंडल की पारदर्शकता

 (i) सूर्य की किरणों का आपतन कोण: पृथ्वी के गोलाकार होने के कारण सूर्य की किरणें इसके तल के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग कोण बनाती है। पृथ्वी के किसी बिन्दु पर सूर्य की किरण और पृथ्वी के वृत्त की स्पर्श रेखा के साथ बनने वाले कोण को आपतन-कोण कहते हैं।

(ii) दिन की अवधि: दिन की अवधि स्थान-स्थान और ऋतुओं के अनुसार बदलती रहती है। पृथ्वी की सतह पर मिलने वाली सूर्यातप की मात्रा का दिन की अवधि से सीधा संबंध है। दिन की अवधि जितनी लम्बी होगी सूर्यातप की मात्रा उतनी ही अधिक मिलेगी। इसके विपरीत दिन की अवधि छोटी होने पर सूर्यातप कम मिलेगा।

 (iii) वायुमंडल की पारदर्शकता : वायुमंडल की पारदर्शकता भी धरातल को मिलने वाली सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करती है। वायुमंडल की पारदर्शकता बादलों की उपस्थिति, उनकी गहनता, धूलकण तथा जलवाष्प पर निर्भर करती है; क्योंकि वे सूर्यातप को परावर्तित, अवशोषित तथा स्थानान्तरित करते हैं। घने बादल सूर्यातप को धरातल पर पहुँचने में बाधा डालते हैं; जबकि बादलों रहित साफ आकाश धरातल पर सूर्यातप पहुंचने में बाधा नहीं डालता। इसी कारण साफ आकाश की अपेक्षा बादलों से घिरे आकाश के समय सूर्यातप कम मिलता है। जलवाष्प भी सूर्यातप को अवशोषित कर धरातल पर उसकी प्राप्ति की मात्रा कम कर देती है।

Factors influencing Insolation

The following factors influence the amount of insolation received.

(i) The angle of incidence.

(ii) Duration of the day. (daily sunlight period)

(iii) Transparency of the atmosphere.

(i) The Angle of Incidence : Since the earth is round, the sun’s rays strike the surface at different angles at different places. The angle formed by the sun’s ray with the tangent of the earth’s circle at a point is called angle of incidence.

(ii) Duration of the day : Duration of the day varies from place to place and season to season. It decides the amount of insolation received on earth’s surface.

(iii) Transparency of the atmosphere: Transparency of the atmosphere also determines the amount of insolation reaching the earth’s surface. The transparency depends upon cloud cover, its thickness, dust particles and water vapour, as they reflect, absorb or transmit insolation. Thick clouds hinder the insolation to reach the earth while clear sky helps it to reach the surface. Water vapour absorb insolation, resulting in less amount of insolation reaching the surface.

प्रश्न ऊष्मा बजट किसे करते है ?

पृथ्वी की सतह का औसत वार्षिक तापमान हमेशा स्थिर रहता है। इसका प्रमुख कारण सूर्यातप और पार्थिव विकिरण के बीच संतुलन का होना है। इसी संतुलन को ऊष्मा बजट कहते हैं।

What is heat Budget?

It has been possible because of the balance between insolation and terrestrial radiation. This balance is termed as a heat budget of the earth.

प्रश्न पवनों के प्रकार बताइए |

पवनों को स्थूल रूप से तीन वर्गों में रखा जाता है |

1. भूमण्डलीय या स्थाई पवनें

2. आवर्ती पवनें

3. स्थानीय पवनें।

State the types of winds.

Winds are broadly classified into three categories.

1. Global or permanent winds

2. Periodic winds

3. Local winds.

प्रश्न वाष्पीकरण के प्रमुख कारक क्या है ?

वाष्पीकरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1.जल की उपलब्धता

2.तापमान

3.वायु की नमी

4. पवन

5. बादलों का आवरण

What are the main factors of evaporation?

Following are the main causes of evaporation.

1. Water Availability

2. Temperature

3. Air humidity

4. Wind

5. Cloud cover

प्रश्न वर्षा के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

(i) नमी की आपूर्ति : किसी प्रदेश में वर्षा की मात्रा को निर्धारित करने वाला महत्वपूर्ण कारक वायुमंडल को मिलने वाली नमी की मात्रा है। ऊष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में वाष्पीकरण सर्वाधिक होता है। अतः वायुमंडल को इस क्षेत्र से सबसे ज्यादा नमी की आपूर्ति होती है। तटीय भागों में आन्तरिक भागों की अपेक्षा अधिक नमी मिलती है। ध्रुवीय प्रदेशों में वाष्पीकरण बहुत कम है, अतः वहाँ वर्षा भी कम है।

(ii) पवनों की दिशा : सन्मार्गी एवं पछुआ पवनों की पेटियों में पवन दिशा महत्वपूर्ण है। समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली पवनें वर्षा करती हैं। स्थल से चलने वाली पवनें शुष्क होती हैं। उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर चलने वाली पवनें गर्म हो जाती हैं, अतः बहुत कम वर्षा करती हैं; जबकि निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर चलने वाली पवनें ठंडी हो जाती हैं और वर्षा करती हैं। उपोष्ण मरूस्थलों में बहुत कम वर्षा होती हैं; क्योंकि वहाँ से पवनें बाहर की ओर चलती है

(iii) महासागर धारायें : गर्म धाराओं के ऊपर की वायु गर्म और आर्द्र होती है। अतः यह वर्षा करती है। इसके विपरीत ठंडी धाराओं के ऊपर की वायु ठंडी और शुष्क होती है। अतः उससे बहुत कम वर्षा होती है।

 (iv) पर्वतों की उपस्थिति : आर्द्र पवनों के मार्ग में पर्वतों के आने से पवनाभिमुख ढालों पर अधिक वर्षा और पवन विमुख ढालों पर कम वर्षा होती है।

(v) वायुदाब पेटियाँ : वायुदाब पेटियों का पवन पेटियों के साथ सीधा संबंध है। निम्न वायुदाब क्षेत्र वर्षा को आकर्षित करते हैं और उच्च वायुदाब क्षेत्र वर्षा विहीन होते है |

Factors Affecting Rainfall Distribution

(i) Moisture supply to the atmosphere is the main factor in determining the amount of rainfall in any region. Equatorial and rest of the tropical region have highest evaporation and hence highest supply of moisture. Coastal areas have more moisture than interior parts of continents. Frigid regions have very low evaporation hence very scanty precipitation.

(ii) Wind direction in the belts of trades and westerlies winds is very important. Winds blowing from sea to land cause rainfall. Land bearing winds are dry. Winds blowing from higher to lower latitudes will get heated and give no rain while those blowing from lower to higher latitudes will get cooled and cause rainfall. Sub-tropical deserts have very little rainfall because they have off-shore winds.

(iii) Ocean currents : Warm current are associated with warm moist winds which cause rainfal1, cold current have cold dry wind and hence no rainfall.

(iv) Presence of mountain across the direction of wind causes more rainfall on the windward side and creates rain shadow on the leeward side.

(v) Pressure belts are closely related with wind direction and rainfall. Areas of low pressure attract rain bearing winds while areas of high pressure do not.

प्रश्न मौसम और जलवायु के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए |

उत्तर:- मौसम

तापमान, आर्द्रता, हवा की गति आदि के संबंध में मौसम किसी विशेष क्षेत्र की रोजमर्रा की वायुमंडलीय स्थिति है।

किसी क्षेत्र में वातावरण की मिनट स्थिति से मिनट।

कम अवधि में भौगोलिक स्थिति में वातावरण की स्थिति क्या है।

लगातार बदलता रहता है।

तापमान, आर्द्रता, हवा का दबाव, बादल, वर्षा आदि।

अल्पावधि के लिए

जलवायु

एक विशेष स्थान के मौसम के मानक पैटर्न के लिए जलवायु दृष्टिकोण, 25 से अधिक वर्षों में लिया गया।

एक क्षेत्र में औसत मौसम।

किस तरह से वातावरण आमतौर पर लंबी अवधि में कार्य करता है।

लगातार बदलती नहीं है।

तापमान और वर्षा।

एक लंबी अवधि में

जलवायुविज्ञानशास्र

Explain the difference between weather and climate.

Answer:- Weather

Weather is the everyday atmospheric condition of a particular area with respect to temperature, humidity, wind speed etc.

Minute to minute conditions of the atmosphere in an area.

What is the state of the atmosphere in a short period of time geographically.

Varies constantly.

Temperature, humidity, air pressure, clouds, rainfall etc.

For the short term

Climate

Climatic approach to the standard pattern of weather of a particular location, taken over 25 years.

Average weather in an area.

How the environment generally acts over the long term.

Does not change continuously.

Temperature and precipitation.

over a long period

Climatology

प्रश्न ऊष्णकटिबंध की विशेषताओं का वर्णन कीजिए ।

उष्णकटिबंधीय वर्षा वन वर्ष के उच्च तापमान वाले क्षेत्र में ऊंचे पेड़ों के साथ एक जंगल होते है जहां सालाना औसतन 50 से 260 इंच बारिश होती है।

उष्णकटिबंधीय वर्षावन अन्य पारिस्थितिकी प्रणालियों की तुलना में अत्यंत उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र हैं।

बोर्नियो के सामयिक वर्षावनों में, वैज्ञानिकों ने ऑर्किड की 2,500 प्रजातियों सहित 15,000 से अधिक पौधों की प्रजातियों का दस्तावेजीकर्ण किया है।

जीवविज्ञानियों का अनुमान है कि उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में विश्व के स्थलीय पौधों और जानवरों की प्रजातियों का लगभग 50% हिस्सा होता है, फिर भी वे विश्व के लगभग 6% भूभाग को शामिल करते हैं।

 Describe the characteristics of the tropics.

A tropical rain forest is a forest with tall trees in an area with high temperatures that receives an average of 50 to 260 inches of rain annually.

Tropical rainforests are areas of extremely high biodiversity compared to other ecosystems.

In the occasional rainforests of Borneo, scientists have documented more than 15,000 plant species, including 2,500 species of orchids.

Biologists estimate that tropical rainforests contain about 50% of the world’s terrestrial plant and animal species, yet they cover about 6% of the world’s landmass.

प्रश्न ऊष्णकटिबंध तथा ऊपोष्ण कटिबंध की विशिष्टताओं के मध्य अंतर बताइए।

ऊष्णकटिबंध

उष्णकटिबंधीय वर्षा वन वर्ष के उच्च तापमान वाले क्षेत्र में ऊंचे पेड़ों के साथ एक जंगल होते है जहां सालाना औसतन 50 से 260 इंच बारिश होती है।

उष्णकटिबंधीय वर्षावन अन्य पारिस्थितिकी प्रणालियों की तुलना में अत्यंत उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्र हैं।

बोर्नियो के सामयिक वर्षावनों में, वैज्ञानिकों ने ऑर्किड की 2,500 प्रजातियों सहित 15,000 से अधिक पौधों की प्रजातियों का दस्तावेजीकर्ण किया है।

जीवविज्ञानियों का अनुमान है कि उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में विश्व के स्थलीय पौधों और जानवरों की प्रजातियों का लगभग 50% हिस्सा होता है, फिर भी वे विश्व के लगभग 6% भूभाग को शामिल करते हैं।

ऊपोष्ण कटिबंध

शीतोष्ण कटिबंध उष्ण कटिबंध के दोनों ओर स्थित हैं।

उत्तरी शीतोष्ण कटिबंध कर्क वृत्त (237° उ.) से आर्कटिक वृत्त या उत्तर ध्रुवीय वृत्त (66/2° उ.) के बीच स्थित है।

दक्षिणी शीतोष्ण कटिबंध की स्थिति मकर वृत्त (23/20 द.) और अन्टार्कटिक वृत्त या दक्षिण ध्रुवीय वृत्त (66%2° द.) के बीच हैं |

इस कटिबंध में सूर्य की स्थिति ठीक सिर के ऊपर कभी नहीं होती।

यहाँ शीत ऋतु में रात की अवधि दिन की अवधि से लम्बी होती है और ग्रीष्म ऋतु में इसके विपरीत होती हैं ध्रुवीय वृत्तों की ओर जाने पर दिन और रात की अवधि का अन्तर बढ़ता जाता है।

ध्रुवीय वृत्तों पर ग्रीष्म ऋतु में दिन की अवधि (सूर्य के प्रकाश की अवधि) 24 घंटे होती है।

जब उत्तरी गोलार्ध में ग्रीष्म ऋतु होती है तो दक्षिणी गोलार्ध में शीत ऋतु होती है।

Differentiate between the characteristics of tropics and sub-tropics.

Tropics

A tropical rain forest is a forest with tall trees in an area with high temperatures that receives an average of 50 to 260 inches of rain annually.

Tropical rainforests are areas of extremely high biodiversity compared to other ecosystems.

In the occasional rainforests of Borneo, scientists have documented more than 15,000 plant species, including 2,500 species of orchids.

Biologists estimate that tropical rainforests contain about 50% of the world’s terrestrial plant and animal species, yet they cover about 6% of the world’s landmass.

Temperate Zone

The temperate zones are on either side of the Torrid zone.

The North Temperate Zone lies between Tropic of Cancer (23½0 North) and Arctic Circle (66½o  North)

The South Temperate Zone lies between Tropic of Capricorn (23½° South) and Antarctic Circle (66½° South)

The sun is never overhead In this zone in winter season, the nights are longer and days are shorter and vice versa in summer.

The difference between the duration of the day and night increases towards the poles.

The maximum duration of day in summer and that of night in winter in the polar circles is 24 hours.

When it is summer in the northern hemisphere it is winter in the southern hemisphere and vice versa

प्रश्न जलवायु को प्रभावित करने वाले

1. अक्षांश

2. ऊंचाई (तुंगता)

3. वायुदाब

4. पवन तंत्र

5. समुद्र से दूरी

6. महासागरीय धाराएं

7. उच्चावच लक्षण

Factors affecting climate

1. latitude

2.Height

3.air pressure

4. Wind System

5. Distance from sea

6. Ocean Currents

7. Relief Symptoms

प्रश्न पारितंत्र के कार्य बताइए ?

पारितंत्र के कार्य निम्नलिखित हैं |

ऊर्जा प्रवाह

खाद्य श्रृंखला

पोषक अथवा जैव-भूरासायनिक चक्र

परिवर्धन एवं विकास

नियंत्रण रचनातंत्र अथवा संतांत्रिकी (साइबर्नेटिक्स)

समय और स्थान में विविधता प्रतिरूप

Explain the functions of ecosystem?

Following are the functions of the ecosystem

Energy flow

Food Chain

Nutrient or bio-geochemical cycles.

Development and evolution.

Control mechanisms or cybernetics.

Diversity pattern in time and space

Let us study each components briefly

प्रश्न हरित गृह प्रभाव नियंत्रण एवं उपचारी उपाय

हरित गृह प्रभाव के लगातार बढ़ते जाने को निम्नलिखित उपायों द्वारा कम किया जा सकता है –

कार्बन-डाइ-आक्साइड के संकेंद्रण को अत्यंत विकसित और औद्योगिक देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान तथा विकासशील देशों जैसे चीन और भारत द्वारा जीवाश्म ईंधनों के उपयोग में जोरदार कटौती करके कम किया जा सकता है।

वैकल्पिक सफल ईंधनों का विकास करने के लिए वैज्ञानिक उपाय किए जाने चाहिए। मीथेन, पेट्रोलियम का विकल्प हो सकती है। जलविद्युत ऊर्जा का विकास एक अच्छा विकल्प है।

कारखानों और मोटरगाड़ियों से खतरनाक CO2 CFC और NO2 के उत्सर्जन पर रोक लगनी चाहिए।

महानगरों में मोटर गाड़ियों को चलाने के दिनों को सीमित करना भी एक अन्य विकल्प हो सकता है। सिंगापुर और मैक्सिको शहर इस प्रथा को अपना रहे हैं।

उष्ण कटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय देशों में जीवाश्म ईंधनों के विकल्प के रूप में सौर ऊर्जा का विकास किया जा सकता है।

बायोगैस संयंत्र लगाने चाहिए जो कि घरेलू उपयोग के लिए एक पारंपरिक ऊर्जा का साधन है।

वनरोपण में वृद्धि करके CO, स्तर को निश्चित रूप से कम किया जा सकता हैं, जिससे अंततः हरित गृह प्रभाव कम होगा।

Greenhouse Effect Control and Remedial Measures
The ever-increasing green house effect can be reduced by the following measures –

Carbon-di-oxide concentrations can be reduced by vigorously reducing the use of fossil fuels by highly developed and industrialized countries such as the United States and Japan, and by developing countries such as China and India.

Scientific measures should be taken to develop alternative successful fuels. Methane can be a substitute for petroleum. The development of hydroelectric power is a good option.

The emissions of hazardous CO2 CFCs and NO2 from factories and motor vehicles should be banned.

Limiting the number of days of running of motor vehicles in metros can also be another option. The cities of Singapore and Mexico are adopting this practice.

Solar energy can be developed as an alternative to fossil fuels in tropical and sub-tropical countries.

Biogas plants should be installed which is a conventional source of energy for domestic use.

CO2 level can definitely be reduced by increasing afforestation, which will ultimately reduce the greenhouse effect.

प्रश्न सतत पोषणीय विकास किसे कहते है

संसाधनों के अंधाधुध उपयोग पर लगाम लगाने की जरूरत है संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग को संसाधन संरक्षण कहते हैं। संसाधन संरक्षण का अर्थ संसाधनों के प्रयोग को पूर्णतः रोकना नहीं है, बल्कि इस प्रकार से उपयोग करना है कि वर्तमान पीढी के साथ-साथ भावी पीढ़ी भी इनसे लाभान्वित हो सके। ऐसे विकास को ही सतत पोषण विकास कहते हैं।

What is sustainable development?

There is a need to curb the indiscriminate use of resources, the judicious use of resources is called resource conservation. Resource conservation does not mean stopping the use of resources completely, but using them in such a way that the present generation as well as the future generations can benefit from them. Such development is called sustainable development.

प्रश्न सतत् पोषणीय विकास के लिए अपनाई जाने वाली कार्यनीति

सतत् पोषणीय विकास को प्राप्त करने के लिए कुछ कार्य नीतियाँ नीचे दी गई हैं

आर्थिक विकास का पुनरुत्थान

जनसंख्या का सतत् पोषणीय स्तर सुनिश्चित करना

मनुष्य की आवश्यक आवश्यकताओं को पूरा करना

वृद्धि की गुणवत्ता को बदलना

संसाधनों के आधार को सुरक्षित रखना और बढ़ाना

तकनीक का पुन

निर्णय लेने में पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को मिलाना

Strategy to be followed for Sustainable Development

Some of the strategies for achieving sustainable development are given below

Resurgence of Economic Growth

Ensuring Sustainable Level of Population

Satisfying the Essential Needs of Man

Changing the Quality of Surge

Securing and expanding the resource base

Re-Technology

Integrating Environment and Economy in Decision Making.

प्रश्न जैवमंडल के घटक

जैवमंडल के घटक:-  

1. अजैविक घटक

2.जैविक घटक

3.ऊर्जा घटक

अजैविक घटक –

इन घटकों में वे सभी अजैविक घटक सम्मिलित होते हैं जो सभी जीवित जीवाणओं के लिये आवश्यक होते हैं। ये हैं- (1) स्थलमंडल (भूपपर्टी का ठोस भाग), (2) वायुमंडल और (3) जलमंडल। खनिज, पोशक तत्व, कुछ गैंसे तथा जल जैविक जीवन के लिये तीन मूलभूत आवश्यकतायें हैं। मृदा तथा अवसाद खनिज पोशक तत्वों के मुख्य भंडार हैं।

वायुमंडल जैविक जीवन के लिये आवश्यक गैसों का भंडार हैं तथा महासागर तरल जल का प्रमुख भंडार है। जहाँ ये तीनों भंडार आपस में मिलते हैं, वह क्षेत्र जैविक जीवन के लिये सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र होता हैं।

मृदा की उपरी परत और महासागरों के उथले भाग जैविक जीवन को जीवित रखने के लिये सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।

जैविक घटक –

पौधे, जीव जन्तु और सूक्ष्म जीवाणुओं सहित मानव पर्यावरण के तीन जैविक घटक हैं-

1. पौधों – जैविक घटकों में पौधे सबसे महत्वपूर्ण हैं। केवल ये ही प्राथमिक उत्पाद हैं क्योंकि ये प्रकाश संष्लेशण प्रक्रिया द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाते हैं, इसीलिये इन्हें स्वपोशी कहा जाता हैं। ये स्वपोशी होने के साथ जैविक पदार्थों एवं पोषक तत्वों के चक्र ण एवं पुर्नचक्रण में भी मदद करते हैं। अत: पौधे सभी जीवों के लिये भोजन और ऊर्जा के प्रमुख स्त्रोत हैं।

2. पशु- पौधे के बाद पशु मुख्य उपभोक्ता हैं इसलिये पशुओं को विषम-तंत्र कहा जाता हैं। सामान्यत: पशुओं के निम्नलिखित तीन कार्य माने जाते हैं-

(1) पौधों द्वारा भोजन के रूप में उपलब्ध कराये गये जैविक पदार्थों का उपयोग.

(2) भोजन को ऊर्जा में बदलना

(3) ऊर्जा की वृद्धि और विकास में प्रयोग करना।

3. सूक्ष्मजीव- इनकी संख्या असीमित हैं तथा इन्हें अपघटक के रूप में माना जाता हैं। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवााणु, फफूँदी आदि आते हैं। ये जीवाणु मृत पौधों और पशुओं तथा अन्य जैविक पदार्थों को अपघटित कर देते है। इस प्रक्रिया द्वारा वे अपना भोजन पा्र प्त करते हैं।  अपघटन की इस प्रक्रिया द्वारा वे अपना भोजन प्राप्त करते हैं।

इस प्रक्रिया द्वारा वे जटिल जैविक पदार्थो को विच्छेदित तथा अलग-अलग कर देते हैं ताकि प्राथमिक उत्पादक अर्थात पौधें उनका दुबारा उपयोग कर सकें।

प्रश्न ऊर्जा घटक

ऊर्जा के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं हो पाता, ऊर्जा प्रत्येक प्रकार के जैविक जीवन के उत्पादन तथा पुर्नउत्पादन के लिये जरूरी हैं। सभी जीव मशीन की तरह कार्य करने के लिये ऊर्जा का प्रयोग करते हैं तथा ऊर्जा के एक प्रकार को दूसरे में बदलते हैं। सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्त्रोत हैं।

Components of the biosphere

Components of the biosphere:-

1. Abiotic components

2. Biological components

3. Energy Component

Abiotic components –

These components include all those abiotic components which are essential for all living organisms. These are- (1) the lithosphere (the solid part of the earth’s crust), (2) the atmosphere and (3) the hydrosphere. Minerals, nutrients, some gases and water are the three basic requirements for biological life. Soils and sediments are the main stores of mineral nutrients.

The atmosphere is the storehouse of gases necessary for biological life and the ocean is the main reservoir of liquid water. Where these three reserves meet, that area is the most fertile area for organic life.

The top layer of the soil and the shallow parts of the oceans are the most important areas for the survival of biological life.

Biological component –

There are three biological components of the human environment, including plants, animals and microorganisms:

1. Plants – Among the biological components, plants are the most important. These are the only primary products because they make their own food by the process of photosynthesis, hence they are called autotrophs. Apart from being autotrophic, they also help in the cycling and recycling of organic matter and nutrients. Therefore, plants are the main source of food and energy for all living beings.

2. Animals- Animals are the main consumers after plants, so animals are called hetero-systems. Generally the following three functions of animals are considered-

(1) Use of organic matter provided by plants as food.

 (2) converting food into energy

(3) Use of energy for growth and development.

3. Microorganisms- Their number is unlimited and they are considered as decomposers. It includes various types of micro-organisms, molds, etc. These bacteria decompose dead plants and animals and other organic matter. By this process they get their food. They get their food by this process of decomposition.

By this process they dissect and separate complex organic matter so that the primary producers i.e. plants can use them again.

Power factor

Without energy, life on earth is not possible, energy is necessary for the production and reproduction of all types of biological life. All living beings use energy to work like a machine and convert one form of energy into another. Sun is the main source of energy.

 प्रश्न भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक

भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक नीचे दिये गये हैं।

(क) स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तार

(ख) समुद्र से दूरी

(ग) उत्तर पर्वतीय श्रेणियाँ

(घ) स्थलाकृति

(ङ) मानसून पवनें

(च) ऊपरी वायु परिसंचरण

(छ) पश्चिमी विक्षोभ तथा उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात

(ज) एल-नीनो प्रभाव

(झ) दक्षिणी दोलन तथा उसका प्रभाव

Factors affecting the climate of India

The factors affecting the climate of India are given below.

(a) Position and latitudinal extent

(b) distance from the sea

(c) Northern mountain ranges

(d) topography

(e) monsoon winds

(f) upper air circulation

(g) Western Disturbances and Tropical Cyclones

(h) El-Nino effect

(i) Southern Oscillation and its effect

प्रश्न भारत में जलवायु के अनुसार वर्ष को निम्न कितने ऋतुओं में बांटा जाता है

भारत में जलवायु के अनुसार वर्ष को निम्न चार ऋतुओं में बांटा जाता है :

(क) शीत ऋतु- दिसम्बर से फरवरी

(ख) ग्रीष्म ऋतु- मार्च से मई दक्षिणी भारत में तथा मार्च से जून उत्तरी भारत में

(ग) आगे बढ़ते दक्षिण पश्चिम मानसून की ऋतु- जून से सितम्बर

(घ) पीछे हटते दक्षिण पश्चिम मानसून की ऋतु- अक्टूबर और नवम्बर

According to the climate in India, the year is divided into how many seasons?

Climatically, the year is divided into following four seasons in India:

(i) The cold weather season – December to February;

(ii) The hot weather season – March to may in south and upto June in the north;

(iii) The advancing southwest monsoon season – June to September;

(iv) The retreating southwest monsoons season – October and November.

प्रश्न दक्षिण पश्चिम मानसून की विशेषतायें:

(i) ये पवनें भारतीय तट पर सामान्यतया जून के पहले सप्ताह में पहुंचती हैं, लेकिन उनके आगमन और वापस लौटने का समय निश्चित नहीं है।

 (ii) वर्षा काल में सूखे के दौर भी आते हैं। इन सूखे के दौरों से कभी-कभी फसलें नष्ट हो जाती हैं।

(iii) कभी-कभी ये पवनें कुछ प्रदेशों के ऊपर से गुजर जाती है और वर्षा नहीं करती।

The characteristics of Southwest Monsoons

(i) These winds generally strike the Indian coast in the first week of June. but their arrival and departure may be before time or even it may be delayed.

(ii) There may be dry spells in between rainy periods. Such long dry spells may even lead to failure of crops.

(iii) At times, these winds skip over certain regions without any cause.

प्रश्न संसाधन का अर्थ एवं महत्व

संसाधन शब्द का अभिप्राय साधारणतः मानवी उपयोग की वस्तुओं से है। ये प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों हो सकती हैं। मनुष्य प्रकृति के अपने अनुरूप उपयोग के लिए तकनीकों का विकास करता है।

महत्व

(क) संसाधन राष्ट्र की अर्थव्यवस्था के आधार का निर्माण करते हैं। भूमि, जल, वन, वायु, खनिज के बिना कोई भी कृषि व उद्योग का विकास नहीं कर सकता।

(ख) ये प्राकृतिक पर्यावरण जैसे कि वायु, जल, वन और विभिन्न जैव रूपों का निर्माण करते हैं, जो कि मानवीय जीवन एवं विकास हेतु आवश्यक है।

 (ग) इन प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग से मनुष्य ने घरों, भवनों, परिवहन एवं संचार के साधनों, उद्योगों आदि के अपने संसार का निर्माण किया है। ये मानव निर्मित संसाधन प्राकृतिक संसाधनों के साथ काफी उपयोगी भी हैं और मानव के विकास के लिए आवश्यक भी।

Meaning and significance of resource

As noted earlier, the term resource generally means the things of utility for the  humans. It could be both natural as well as cultural. Humans develop technologies to utilise nature favourably.

Importance

1. Resources form the backbone of the economy of a nation. Without land, water, forest, air, mineral one cannot develop agriculture and industry.

2. They constitute natural environment like air, water, forests and various life forms, which are essential for human survival and development.

3. By utilising natural resources, humans created their own world of houses, buildings, means of transport and communication, industries etc. These are also very useful along with natural resources and these human made resources are essential for development.

प्रश्न संसाधनों का वर्गीकरण

Classification of resources

प्रश्न संसाधनों के संरक्षण की विधियाँ

(क) यह आवश्यक है कि लोगों के मध्य संसाधनों के परिरक्षण व संरक्षण के बारे में

जागरूकता उत्पन्न की जाए। प्राकृतिक संसाधनों के बड़े पैमाने पर विनाश के घातक परिणामों के बारे में लोगों को जागरूक बनाना चाहिए।

(ख) वनरोपण : अपरिपक्व तथा युवा वृक्षों को काटने से रोकना तथा लोगों में वृक्षों के रोपण तथा पोषण के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना, वनों के संरक्षण में सहायक हो सकते हैं।

(ग) पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार कृषि, समोच्च रेखाओं के अनुरूप जुताई, झूमिंग कृषि पर नियंत्रण, अतिचराई तथा अवनालिकाओं को रोकना, मृदा संरक्षण की कुछ महत्वपूर्ण विधियाँ हैं।

 (घ) वर्षा जल को रोकने के लिए बाँधों का निर्माण, फव्वारा, ड्रिप या ट्रिकल सिंचाई

तकनीकों का उपयोग, औद्योगिक या घरेलू उपयोग हेतु जल का पुनर्चक्रण अमूल्य जल संसाधन के संरक्षण में सहायता करेंगे। |

(ङ) खनिज अनवीकरणीय संसाधन है, इसलिए कुशल उपयोग, निकालने व शोधन की ज्यादा अच्छी तकनीकों का विकास, खनिजों का पुनर्चक्रण तथा स्थानापन्नों के उपयोग द्वारा इनका संरक्षण किया जाना चाहिए।

(च) ऊर्जा के पारम्परिक स्त्रोतों को बचाने के लिए, ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्त्रोतों, जैसे- सौर, पवन या जल का विकास करना होगा।

Methods of conservation of resources

(1) It is necessary to create awareness about the preservation and conservation of resources among people. They should be made aware of the harmful result of large scale destruction of natural resources.

(2) Afforestation, preventing the felling of immature and young trees and creating awareness amongst the local people about planting and nurturing trees may help in conserving forests.

(3) Terrace farming in hilly regions, contour ploughing, controlling the shifting cultivation, overgrazing and plugging the Gullies. Some of are the import methods of soil conservation.

(4) Construction of dams to impound rain water, use of sprinklers, drip or trickle irrigation technique, recycling of water for industrial and domestic purposes will help in conservation of the invaluable water resource.

(5) Minerals are non-renewable resources so they need to be conserved through efficient utilisation, development of better technology of extraction and purification, recycling of minerals and use of substitutes.

(6) Non conventional sources of energy e.g. solar, wind or water will have to be developed in order to save conventional sources of energy.

प्रश्न संसाधनों के संरक्षण की नीति

संसाधनों के संरक्षण करने की नीति निम्नलिखित है

(क) राष्ट्र में वन एवं पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को उच्च प्राथमिकता देने के लिए सन् 1980 में केन्द्रीय स्तर पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय बनाया गया। आज, सभी राज्य सरकारों ने भी वन एवं पर्यावरण का स्वतंत्र मंत्रालय बनाया है।

(ख) 1950 की राष्ट्रीय वन नीति को, राष्ट्र की तात्कालिक आवश्यकता के अनुसार वनों के संरक्षण, सुरक्षा व विकास के लिए 1988 में संशोधित किया गया। इस नीति के अंतर्गत हरित क्षेत्र को बढ़ाने, जलाऊ लकड़ी के उत्पादन व आपूर्ति आदि के लिए सामाजिक वानिकी योजना प्रवर्तित की गई।

(ग) भूमि संसाधनों के संरक्षण तथा इनके अनुकूलतम उपयोग के लिए संदर्श योजना बनाने के लिए 1983 में राष्ट्रीय भूमि उपयोग एवं संरक्षण बोर्ड की स्थापना की गई। सन् 1985 में इसे पुनः संगठित किया गया। (घ) राष्ट्रीय जल नीति सन् 1987 में पारित की गई जो सिंचाई, जल विद्युत उत्पादन, नौ संचालन, जल के औद्योगिक व अन्य उपयोग के अलावा सबसे बढ़कर पेयजल को प्राथमिकता देती है। 

(ङ) सन् 1990 में बनी राष्ट्रीय खनिज नीति खनिजों के उत्खनन व निर्यात के लिए घरेलू विदेशी उपक्रमों को निवेश की अनुमति देती है। केन्द्रीय खान मंत्रालय के अंतर्गत प्राधिकरण को यह खनिज उत्खनन में निवेश व परमिट के लिए यह अनुमति देती है।

(च) नई कृषि नीति में पारिमित्र व सततवाही कृषि तकनीकों, जैसे जैव-तकनीक, को प्रोत्साहित किया गया है।

Policy on Conservation of Resources

Following is the policy to conserve resources

1. A ministry of forests and environment was created at the Union level in 1980 to give high priority to issues relating forest and environment in the country. By now, all the state government have also created independent ministry of forest and environment.

2. National Forest policy of 1950 was revised in 1988 to make an effective tool as per current needs to protection, conservation and development of forest in the country. Under this policy social forestry scheme was launched to increase green coverage, produce and supply of fuelwood etc.

3. National land use and conservation Boards were established in 1983, and restructured in 1985 for land resource conservation and preparation of perspective plan for optimum utilization of land resources.

4. National water policy was adopted in 1987 which accord the highest priority to drinking water, followed by irrigational hydel power generation, nevigational, industrial and other uses of water.

5. A National Mineral Policy framed in 1990 has allowed both domestic and foreign enterprise to invest in mineral extraction and export. It also allowed the authority to permit investment in mineral extraction directly under the Union Ministry of Mines.

6. In new agriculture policy of encouragement is given to use eco-friendly and sustainable agricultural technology, i.e. bio-technology.

प्रश्न मिट्टी के प्रमुख प्रकार कौन – कौन से है  |

मिट्टी के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है

जलोढ़ मिट्टी [43%]

लाल मिट्टी [18.5%]

काली / रेगुर मिट्टी [15%]

शुष्क/रेगिस्तानी मिट्टी

लैटेराइट मिट्टी

खारी मिट्टी

पीट / दलदली मिट्टी

जंगल की मिट्टी

उप-पर्वत मिट्टी

स्नोफील्ड्स

What are the main types of soil?

Following are the main types of soil

Alluvial soil [43%]

Red soil [18.5%]

Black / regur soil [15%]

Arid / desert soil

Laterite soil

Saline soil

Peaty / marshy soil

Forest soil

Sub-mountain soil

Snowfields

प्रश्न प्रमुख वनस्पति प्रकार

भारत में पायी जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति को सामान्यतया निम्न प्रकारों में बांटा जाता है :

आई उष्णकटिबन्धीय सदाहरित एवं अर्द्ध सदाहरित वनस्पति

उष्णकटिबन्धीय आर्द्र पर्णपाती वनस्पति

उष्णकटिबन्धीय शुष्क वनस्पति

ज्वारीय वनस्पति तथा

पर्वतीय वनस्पति

Major plant types

The natural vegetation found in India is generally divided into the following types:

I. Tropical evergreen and semi-evergreen vegetation

Tropical moist deciduous vegetation

Tropical dry vegetation

Tidal vegetation and

Mountain Vegetation

प्रश्न सिंचाई के साधन

भारत में सिंचाई के तीन प्रमुख साधन हैं

(क) कुएं एवं नलकूप

(ख) नहरें तथा

(ग) तालाब।

Means of irrigation

There are three main means of irrigation in India

(a) Wells and Tube wells

(b) canals and

(c) Pond.

प्रश्न वर्षा जल संचयन के तरीके व उपाय

वर्षा जल संचयन के तरीके व उपाय निम्नलिखित है-


1. सतह जल संग्रह सिस्टम

2. छत प्रणाली

3. बांध

4. भूमिगत टैंक

5. जल संग्रह जलाशय

Rain water harvesting methods and measures

Following are the methods and measures of rain water harvesting.

1. Surface Water Collection System

2. Roofing System

3. Dam

4. Underground tank

5. Water Collection Reservoir

प्रश्न जल संभर विकास से लाभ

 जल संभर विकास के द्वारा निम्नलिखित लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं

1. पीने और सिंचाई के लिए जल की आपूर्ति,

2. जैव विविधता में वृद्धि,

3. जलाक्रान्त तथा लवणता का हास,

4. कृषि उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि,

 5. वनों के कटाव में कमी,

 6. जीवन स्तर उठना,

7. रोजगार में वृद्धि,

8. स्थानीय लोगों की सहभागिता से आपसी मेल-जोल बढ़ना।

Benefits of watershed development

  Following benefits can be achieved by watershed development

1. Water supply for drinking and irrigation,

2. Increase in Biodiversity,

3. Water erosion and loss of salinity,

4. Increase in agricultural production and productivity,

5. Reduction in deforestation,

6. raising the standard of living,

7. Increase in employment,

8. To increase interaction with the participation of local people.

प्रश्न जल संरक्षण के उपाय

जल संरक्षण के उपाय निम्नलिखित है

1. नदियों का जल व्यर्थ में बहकर सागरों में न जाए। इसके लिए नदियों पर बाँधों और जलाशयों का निर्माण करना चाहिए।

 2. नदियों के जल को नगरों की गंदगी से हर कीमत पर बचाना चाहिए।

3. बाढ़ों की रोकथाम के लिए गंभीरता से हर संभव प्रयास करने चाहिए।

4. जल का सदुपयोग करना चाहिए।

5. जल संरक्षण के प्रति जन जागरण पैदा करना चाहिए।

6. जल संरक्षण और उसके कुशल प्रबंधन से सम्बन्धित सभी क्रिया-कलापों में लोगों को शामिल कर; उनसे सक्रिय सहयोग लेना चाहिए। बागवानी, वाहनों की धुलाई, घर-आँगन और शौचालयों की सफाई में पेय जल का उपयोग नहीं करना चाहिए।

 8. जलाशयों को प्रदूषण से बचाना चाहिए।

9. पानी की टूटी पाइप लाइनों की अविलम्ब मरम्मत करनी चाहिए।

 10. जल की ‘हर बूंद’ कीमती है। यह भाव जनमानस तक पहुँचाना चाहिए। |

11. वर्षा पोषित क्षेत्रों में ऐसी फसलों के उगाने पर रोक होनी चाहिए। जिन्हें अधिक पानी की आवश्यकता होती है।

12. वृक्षा रोपण पर बल देना चाहिए।

Methods of water conservation

Following are the water conservation measures

1. Dams and reserveors should be constructed on rivers so that river water does not go waste into the seas and oceans.

2. The water of rivers should be saved from pollution by urban waste at all costs.

3. Serious efforts should be made to control floods.

4. Water should be used properly.

5. Mass awakening should be around for water conservation.

6. Solicit active participation of the people in all the activities related to water

conservation and efficient management.

7. Potable water should not be used for gardening, washing of vehicles and cleaning of household.

8. Saving of reservoirs from pollution.

9. Broken pipelines of water should immediately be repaired.

10. Every drop of water is precious, this should be popularized among the masses.

11. Such crops should not be grown in rain fed areas which require more water.

12. There should be stress on afforestation.

प्रश्न कृषि पद्धति के प्रकार

 (i) जीवन-निर्वाह कृषि

 (ii) आर्द्र-कृषि

 (ii) स्थानांतरी कृषि

 (iv) शुष्क-कृषि

(v) वाणिज्यिक कृषि

(vi) रोपण कृषि

Types of farming

(i) Subsistence Farming

(ii) Wet Farming

(iii) Shifting Cultivation

(iv) Dry Farming

(v) Commercial Farming

(vi) Plantation Farming

प्रश्न भारत के “जलवायु आधारित कृषि” प्रदेश

उत्तर-पश्चिमी हिमालय प्रदेश

उत्तर-पूर्वी हिमालय प्रदेश

निचला गंगा का मैदान

मध्य गंगा का मैदान 

ऊपरी गंगा का मैदान

पार-गंगा का मैदान (पंजाब मैदान)

पूर्वी पठारी एवं पहाड़ी प्रदेश 

मध्य पठारी एवं पहाड़ी प्रदेश

पश्चिमी पठारी एवं पहाड़ी प्रदेश

दक्षिणी पठारी एवं पहाड़ी प्रदेश

पर्वी तटवर्ती मैदानी एवं पहाडी प्रदेश

पश्चिमी तटवर्ती मैदानी एवं पहाड़ी प्रदेश

Agro-climatic regions of india

The North-Western Himalaya

The North-East Himalaya

The Lower Ganga Plain

The Middle Ganga Plain

The Upper Ganga Plain

The Trans Ganga plain (Punjab plains)

The Eastern Plateau and hills

The Central Plateau and hills

The Western Plateau and hills

The Southern Plateau and hills

The East Coast Plains and hills

The West Coast Plains and Ghats

प्रश्न दसवी पंचवर्षीय योजना काल

(i) भूमि एवं जल संसाधनो का संरक्षण,

(ii) कृषि के प्रोत्साहन हेतु ग्रामीण क्षेत्रो में आधारभूत संरचनात्मक सुविधाओं का विकास,

(iii) कृषि की नई प्रविधियों का प्रचार-प्रसार,

(iv) कृषि क्षेत्र के लिए बैंको द्वारा प्रदत्त ऋण के प्रवाह को बनाए रखना, तथा

(v) कृषि विपणन में सुधार।

Tenth five year plan period

(i) Conservation of land and water resources,

(ii) development of infrastructure facilities in rural areas for the promotion of agriculture,

(iii) propagation of new techniques of agriculture,

(iv) to maintain the flow of credit provided by banks to the agricultural sector, and

 (v) Reforms in agricultural marketing.

प्रश्न नई कृषि नीति

(i) कृषि क्षेत्र में 4 प्रतिशत से अधिक वार्षिक वृद्धि को प्राप्त करना।

(ii) संसाधनों का उचित एवं कार्य कुशलता के साथ उपयोग करते हुए जल और मृदा का तथा जैव-विविधता का संरक्षण करना।

(iii) वृद्धि ऐसी हो जिसमें विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में एवं वहाँ के कृषकों के बीच निष्पक्षता एवं समानता कायम रहे।

(iv) वृद्धि जो घरेलू बाजार की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके तथा कृषि उत्पादनों के निर्यात को बढ़ा सके।

(v) प्रौद्योगिक, पर्यावरणीय एवं आर्थिक रूप से सतत वृद्धि हो।

New agriculture policy


(i) Achieving more than 4 percent annual growth in the agricultural sector.

(ii) Conserving water and soil and biodiversity by using resources efficiently and efficiently.
(iii) Growth should be such in which fairness and equality are maintained in different geographical areas and among the farmers there.
(iv) Growth that can meet the needs of the domestic market and increase exports of agricultural products.
(v) There should be sustainable growth technologically, environmentally and economically.

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