NIOS Class 12th Hindi (301) Most Important Questions & Answers

 

महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

1. (क) निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए :

सखी म्हारी नींद नसाणी हो ।

पिय रो पंथ निहारत सब रैण बिहाणी हो ।

सखियन सब मिल सीख दयाँ मण एक णा मानी हो ।

बिन देख्याँ कल ना पड़ाँ मण रोस णा ठानी हो ।

अंग खीण व्याकुल भयाँ मुख पिय पिय बाणी हो ।

अंतर वेदन बिरह री म्हारी पीड़ णा जाणी हो ।

ज्यूँ चातक घणकूँ रटै, मछरी ज्यूँ पाणी हो । मीराँ व्याकुल बिरहणी, सुध बुध बिसराणी हो ॥

उत्तर –

प्रसंगप्रस्तुत पद मीरांबाई पाठ से लिया गया है | पद में मीराँ ने विरह की वेदना को अभिव्यक्त किया है। विरहिणी की नींद उड़ जाना तथा प्रियतम के बिना किसी भाँति चैन न पड़ना – इस भाव को मीराँ ने अत्यंत मार्मिकता के साथ प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।

व्याख्या मीरा कहती हैं कि हे सखी, प्रियतम के वियोग में हमारी नींद जाती रही है, प्रियतम की राह देखते हुए सारी रात व्यतीत हो गई है। हालाँकि सारी सखियों ने मिलकर मुझे सीख दी थी, पर मेरे मन ने उनकी एक न मानी और मैंने कृष्ण से यह स्नेह संबंध जोड़ ही लिया। अब यह हालत है कि उन्हें देखे बिना मुझे चैन नहीं पड़ता और बैचेनी भी जैसे मुझे अच्छी लगने लगी है। मेरा सारा शरीर अत्यंत दुबला और व्याकुल हो गया है तथा मेरे मुख पर सिर्फ प्रियतम का ही नाम है। मीराँ कहती हैं, हे सखी! मेरे विरह ने मुझे जो आंतरिक पीड़ा दी है, उस पीड़ा को कोई नहीं जान पाता। जैसे चातक बादल की ओर एक टक दृष्टि लगाए रहता है और मछली पानी के बिना नहीं रह पाती, तड़पती रहती है, ठीक उसी प्रकार मैं, अपने प्रियतम के लिए तड़पती हूँ। प्रिय के वियोग में मैं अत्यंत व्याकुल हो गई हूँ और इस व्याकुलता में मैं अपनी सुध-बुध भी खो बैठी हूँ।

विशेष –

➛ भाषा ब्रजभाषा है

➛ यह काव्य गतिकव्य है

➛ वियोग श्रृंगार रस है

अथवा

स्पंदन में चिर निस्पंद बहा

क्रंदन में आहत विश्व हँसा,

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झरिणी मचली !

मेरा पग-पग संगीतभरा,

श्वासों से स्वप्न पराग झरा,

नभ के नव रंग, बुनते दुकूल,

छाया में मलय बयार पली !

उत्तर-

प्रसंग प्रस्तुत पद महादेवी वर्मा के पाठ से लिया गया है |कविता का अर्थ दो समानांतर स्तरों पर लगाया जा सकता है। पहला – जलपूर्ण उमड़ते-घुमड़ते बादल; और दूसरा-दुखी और वेदनाग्रस्त नारी, जो स्वयं कवयित्री भी हो सकती है।

व्याख्या- पहले ‘बदली’ के पक्ष में – बदलो की हर गर्जना के पीछे और हलचल के पीछे स्थिरता बसी है। मानो कोई है जिस पर इस क्रंदन(शोर) का कोई प्रभाव नहीं होता, वह निस्पंद रहता है। जबकि उस गर्जना पर विश्व प्रसन्न होता है क्योंकि वह भीषण गरमी से दुखी है, इसलिए बादलों की हलचल और गर्जन उन्हें प्रसन्न कर जाती है। बादलों में बसी विद्युत की कौंध दीपकों-सी प्रतीत होती है और उनमें स्थित जल नदी की भाँति प्रवाहित होने को आतुर है।

दूसरी ओर विरहिणी के पक्ष में उसके स्पंदन में वह चिर निस्पंदन बसा है, जो सदा से स्पंदन रहित है, स्थिर है, बादलों की गर्जना में पीड़ित और चोट खाए हुए संसार के लोगों की पीड़ा की अभिव्यक्त हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह गर्जन | किसी की पीड़ा के स्वर नहीं, बल्कि कोई ज़ोर-ज़ोर से हँस रहा हो परंतु यह किसी एक प्रेमी का क्रंदन है।विरहिणी की आँखों में दीपक से जलते रहते हैं। ये दीपक विरहाग्नि के भी हो सकते हैं और आशा के भी। आँसू उसकी पलकों से नदी के समान बहने को आतुर हैं वह अपनी विरह-वेदना को आँसुओं के रूप में प्रवाहित करना चाहती है,  कवयित्री कहना चाहती है कि जिस प्रकार बदली पानी से भरी रहती है, उसी प्रकार मेरी आँखें भी अश्रुपूर्ण रहती हैं।

नीर भरी बदली अपनी स्थिति का आगे वर्णन कर रही है: मेरे तो कदम-कदम पर संगीत है- बिजली की कड़क, बादलों का गर्जन उसके आने की प्रसन्नता में मानव-जगत या पशु-जगत की हलचल ही मानो उसके पग-पग का संगीत है। बादलों के उमड़ने के साथ चलने वाली हवा उसकी साँसें हैं, जिनसे पराग झरता है। उसे कवयित्री ने ‘स्वप्न-पराग’ कहा है।

बादलों के साथ लोगों के स्वप्न जुड़े हैं। उनके घुमड़ने पर मानो वही स्वप्नों से पराग झरता है। नवरंगों से युक्त इंद्रधनुषी आभा ही मानो बादलों के रंग भरे वस्त्र हैं। बादलों की छाया में मलय-बयार, शीतल सुगंधित पवन आश्रय ग्रहण करती है। जब बादल घुमड़ते हैं तो शीतल हवा बहने लगती है। वही कवयित्री के शब्दों में ‘मलय-बयार’ है। वह कहती हैं कि प्रियतम की स्मृति मुझे मलय पर्वत से आने वाली शीतल-मंद सुगंधित वायु के समान प्रतीत होती है।

विशेष

➛ खाड़ी बोली का प्रयोग किया गया है

➛ विरह वेदना की अभिव्यक्ति है

➛ मानवीकरण अलंकर का प्रयोग है

➛ वियोग श्रृंगार रस है

(ख) निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए:

सब घट अंतर रमसि निरंतर,

मैं देखन नहिं जाना ।

गुन सब तोर, मोर सब औगुन, कृत उपकार न माना ॥

उत्तर –

भाव सौन्दर्य यह पंक्तियां कवि रैदास के पद से ली गई है | यह कवि रैदास जी कहते है | है ! ईश्वर आप तो सभी  जगह (घट) निवास करता है | मैं ही कभी आपको नही देख पाया | आपके अंदर गुण-ही-गुण है, जबकि मेरे अंदर अवगुण- ही अवगुण, आपने मुझ पर कितने उपकार किए हैं लेकिन मैं उनका महत्व नहीं समझ पाया।

शिल्प सौन्दर्य

➛ कवि – रैदास

➛ पद ब्रजभाषा में रचित हैं |

➛ पद राग-रागनियों में बँधे हुए हैं

प्रश्न –  “फाग’ पद में गोपिका की आँख से क्या निकल गया और क्या रह गया ?

उत्तर – “फाग” के माह में गोपिका की आँखों से गुलाल निकल गया, लेकिन श्री कृष्ण की छवि गोपिका की आँखों में ही रह गयी | शायद गोपिका को कृष्ण के प्रति प्रेम की भावना आ जाती है। जिसकी चर्चा वह अपनी सखी से करती है। उसे सौगंध भी देती है। गोपिका कहती है मैं कहाँ जाऊँ और किस प्रकार का प्रयास करूं, क्योंकि आँखें बार-बार धोने से मेरी पीड़ा बढ़ रही है। परंतु श्री कृष्ण मेरे नेत्रों में समा गए  हैं, उसे निकालना मेरी सामर्थ्य के परे हैं।

प्रश्न –  “फाग’ पद में गोपिका किसे और क्यों धो धोकर हार गई ?  

उत्तर – “फाग” पद में गोपिका के आँखों में बसे श्री कृष्ण के प्रेम को धो धोकर हार गई | गोपिका इसलिए हार गई क्योंकि कवि ने कृष्ण के प्रति उमड़े प्रेम को आँखों में अबीर पड़ने की स्थिति से वर्णित किया है, पर जितनी सरलता से अबीर धुल जाता है उतनी सरलता से कृष्ण प्रेम नहीं धुल सकता। न गोपी ऐसा चाहती ही है, वह तो अपनी सहेली की सौगंध खाकर उसे आश्वासन दिलाना चाहती है कि वह कृष्ण को निकाल नहीं पा रही है और न उसे इसका कोई उपाय सूझ रहा है |

प्रश्न –  पद्माकर के ‘फाग’ वर्णन में गोपिका की किस विवशता और दयनीयता का उल्लेख किया गया है?

उत्तर –  गोपिका की विवशता यह है कि कृष्ण के साथ होली खेलते हुए उसकी आँखों में जहाँ । अबीर अर्थात् गुलाल पड़ गया है, वहीं हृदय में कृष्ण भी बस गया है। वह अपनी सखी से कहती है मैने बार-बार आँखों को धोया है, धो-धोकर हार गई हूँ, पर गुलाल निकलने का नाम नहीं ले रहा है। इसके कारण मुझे बहुत कष्ट हो रहा है। इस व्यथा को मैं किससे कहूँ ? कैसे कहूँ ! फिर किसी न किसी तरह आँखों में गिरा गुलाल तो निकल जाएगा लेकिन इसके साथ जो मेरे हृदय में । अहीर का लड़का कृष्ण बस गया है, वह कैसे निकलेगा ? यों भी गोपी कृष्ण को अपने हृदय से निकालना नहीं चाहती है।

प्रश्न –  कृष्ण के प्रति मीराँ का प्रेम किस प्रकार का है ?

उत्तर – मीरा का कृष्ण के प्रति प्रेम ऐसा है जिसमें प्रेम भी है, और भक्ति भी है। उनके प्रेम में प्रेम और भक्ति का मिश्रण है। मीराबाई कृष्ण को अपना प्रियतम मानती थीं। उन्होंने बचपन से ही कृष्ण को अपना पति स्वीकार कर लिया था। भले ही उनकी शादी राजघराने में हो गई।

लेकिन वह कृष्ण को ही मन ही मन अपना पति मानती रहीं। अपने भौतिक जीवन के पति की मृत्यु के बाद उन्होंने कृष्ण के प्रति अपने को पूरी तरह समर्पित कर दिया और अपनी प्रेम भरी भक्ति भावना को प्रकट करना आरंभ कर दिया। उन्होंने अपने प्रेम में भक्ति रस घोलते हुए अपने प्रेम को भक्तिमय बना दिया।

प्रश्न –  मीराँ की रातों की नींद क्यों उड़ गई ?

उत्तर – मीरा की रातों की नींद इसलिए उड़ गई क्योंकि वह प्रियतम श्री कृष्ण के वियोग में बेचैन रहती हैं | और उनके  

प्रश्न –  मीरा की आंतरिक पीड़ा का कारण क्या है?

उत्तर – मीरा को श्री कृष्ण  को देखे बिना चैन नही पड़ता वह इस विरह के कारण अत्यंत दुबली व व्याकुल होती जा रही है, और यही मीरा की आंतरिक पीड़ा का कारण है |

प्रश्न –  “मुझे कदम-कदम पर’ कविता में अनेक राहें देखकर कवि क्या करना चाहता है ?

उत्तर – कविता में अनेक राहें देखकर कवि उन सभी राहों पर चलना चाहता है अर्थात् उन सभी से गुज़रना चाहता है, उन सभी के अनुभव प्राप्त करना चाहता है। कवि ने चौराहों को सकारात्मक दृष्टि से देखते हुए उन्हें विकल्प भी माना है। ये विकल्प नित्य-प्रतिदिन व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करते हैं ।

प्रश्न –  बांझ का झूमता हुआ पेड़ किसका प्रतीक है?

उत्तर – ‘एक था पेड़ और एक था ठूंठ’  पाठ में बांझ का झूमना लेखक को यह महसूस करता है की उसका दोस्त सामने खड़ा उससे हाल-चाल पूछ रहा है |

प्रश्न –  ‘एक था पेड़ और एक था ठूंठ’ में लेखक ने हिटलर और स्टॉलिन का उदाहरण किस रूप में दिया है?

उत्तर – लेखक ने हिटलर और स्टॉलिन का उदाहरण उनके जिद्दीपन और अड़ियल स्वभाव के कारण दिया है |

प्रश्न –  ‘एक था पेड़ और एक था ठूंठ !’ पाठ के माध्यम से लेखक ने पाठकों को क्या संदेश दिया है?

उत्तर – ‘एक था पेड और एक था ठूंठ पाठ’ में लेखक ने यह संदेश दिया है कि व्यक्ति को जीवन में परिस्थितिया स समझौता एक सीमा तक करना चाहिए। एक पेड़ की जड़ के समान हमें अपने आदर्शों व सिद्धांतों पर सुदृढ़ रहना चाहिए और उसी तरह समन्वयवादी बनना चाहिए जिस तरह-हवा में झूमता पेड़ होता है। इससे हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि विपरीत परिस्थितियों में हमें विवेक से काम लेना चाहिए और परिस्थितियों से सोच-समझकर समझौता करना चाहिए। से निबंध प्रभावपूर्ण बन गया है। भाषा साधारण बोल-चाल की है।

प्रश्न –  भिखारिन के दो बच्चों के साथ अरुणा ने कैसा व्यवहार किया ?

उत्तर – भिखारिन के दोनों से बच्चों अरुणा बहुत स्नेह करती थी | तभी भिखारिन की मृत्यु के पश्चात अरुणा उन दोनों बच्चो को गोद ले लेती हैं |

प्रश्न –  कुटज की सबसे सराहनीय बात क्या है ? ।

उत्तर – कुटज की सबसे सरहनीय बात उसकी जिजीविषा (जीने की प्रचंड इच्छा ) है। यह इच्छा कुटज को चारों ओर तीव्र झुलसाती धूप तथा धधकती लू के तेज झोंके दूर-दूर तक फैला निःशब्द सन्नाटा और नीचे न प्राणदायी मिट्टी, न खाद, न पानी में भी जीवित रहने की शक्ति देती है।

प्रश्न –  कुटज वृक्ष की कोई दो विशेषताएँ बताइए।

उत्तर –

  1. कुटज मुश्किल हालत में भी साथ रहता है ।
  2. कुटज वृक्ष ऐसी जगह पर, खड़ा था जहाँ कुछ उग और पनप नहीं सकता।

प्रश्न –  अनुराधा ने शहर जाकर नौकरी करने के बारे में क्यों सोचा ?

उत्तर –  अनुराधा गाँव में रहती थी और वहाँ आसानी से रोजगार प्राप्त नही होता | परंतु शहर में नौकरियां गाँव के मुकाबले सरलता से प्राप्त हो जाती हैं | इसलिए अनुराधा ने शहर जाकर नौकरी करने का सोचा | और अनुराधा भयमुक्त होकर स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए शहर जाना चाहती थी |   

प्रश्न –  अनुराधा की किन्हीं दो चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए ।

उत्तर – अनुराधा की चारित्रिक विशेषता

  1. संघर्षशील अनुराधा का चरित्र संघर्षशील स्त्री का चरित्र है। वह अच्छी तरह जानती है कि अगर उसे अपने अस्तित्व को बनाए रखना है तो आत्मबल से संघर्ष करना पड़ेगा और वह इसमें पूरी तरह सफल होती है।
  2. निडर अनुराधा का चरित्र निडर है। वह अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए निडरता से अपने ससुराल पक्ष से संघर्ष करती है और अन्त में प्राप्त करती है।

प्रश्न –  देवी सिंह की तीन चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए ।

उत्तर – देवी सिंह की चारित्रिक विशेषताएँ –

  1. देवी सिंह निडर व साहसी लड़का था | वह दुल्हन के द्वार पर पहुंचते ही देखता है कि राजा नायक सिंह और मुसलमानों में युद्ध हो रहा है | यह देख वह दुल्हे के वश में ही मुसलमान सैनिकों पर टूट पड़ता है |
  2. देवी सिंह एक योग राजा था | वह कुंजर सिंह व रानियों का आदर करता था | दरबारियों व सामंतो को भी अपने अनुकूल बनाए रखता था |
  3. देवी सिंह चरित्रवान, धर्मपरायण और संवेदनशील शासक था | कुछ दिनों में ही वह राजनीति में विख्यात हो जाता है |

प्रश्न –  लोचन सिंह ने मुसलमान सैनिक को दुर्गा मंदिर से चले जाने को क्यों कहा ?

उत्तर – मुसलमान सैनिक दुर्गा के देखने के लिए आये थे। परंतु उनके मन में कुछ शरारत चल रही थी। जिससे मंदिर की मर्यादा भंग हो रही थी। इसलिए लोचन सिंह मुसलमान सैनिकों को दुर्गामंदिर से चले जाने के लिए कहता हैं।

प्रश्न –  राजा ने पालर झील में स्नान करने का विचार क्यों रखा ?

उत्तर – राजा पहूज झील में स्नान करना चाहते थे। परतुं पहूज में पानी बहुत कम था। पहूज में स्नान करने के लिए पीठ के बल लेटना पडता। इस पर जब कुंजर सिंह पालर की झील में डूबकी लगाने का विकल्प देते हैं तो राजा इससे सहमत हो जाते है पालर की झील में स्नान करेंगे। साथ ही वहाँ पर एक देवी के होने की अफवाह भी थी कि एक दाँगी के घर पर दुर्गाजी ने अवतार लिया है।

प्रश्न –  अलीमर्दान की तीन विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए ।

उत्तर – अलीमर्दान की विशेषताएँ –

  1. कालपी का फौजदार अलीमर्दान मुगल दरबार की राजनीति से जुड़ा है। हिन्दू राजाओ पर नज़र रखता है और उन्हें डराता रहता है।
  2. राजा नायक सिंह की मृत्यु के बाद जब छोटी रानी बगावत करती है तो वह उसके राखीबंध भाई होने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेता है और अपने दरबारिओ तथा रामदयाल के उकसाने पर दुर्गा की अवतार समझी जाने वाली कुमुद को अपनी रानी बनाने का निश्चय करता है।
  3. अलीमर्दान हिन्दुओ की धार्मिक भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाता वह दुर्गा का मंदिर ध्वस्त होता है मगर अलीमर्दान की तोपों से नहीं।

प्रश्न –  उपन्यास के संवाद बड़े रोचक और पात्रानुकूल हैं । – स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – ‘विराटा की पद्मिनी ‘ उपन्यास की संवाद की विशेषताएं –

  1. विराटा की पद्मिनी के संवाद सरस हैं और रोचक है।
  2. संवाद पात्रानुकूल हैं और उनमे परिस्थिति की मांग झलकती है।
  3. दरबारियों के संवादों में चाटुकारिता, छल-कपट और मरने-मारने की शब्दावली है।

प्रश्न –  कुमुद की किन्हीं तीन चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – कुमुद की चरित्र की विशेषताएं-

  1. कुमुद जन्म से अत्यंत सुन्दर है। किशोरावस्था में पहुंचते-पहुंचते उसकी ख्याति चारो तरफ फेल जाती है। लोग उसे दुर्गा का अवतार मानते थे।
  2. कुमुद का प्रेमी हृदय है। वह कुमार सिंह से प्रेम करती है।
  3. कुमुद को जब अलीमर्दान अपने नापाक हाथो से स्पर्श करना चाहता है तो वह अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए बेतवा नदी में छलांग लगाकर अपने प्राणो का विसर्जन कर देती है।

प्रश्न –  देवीसिंह ने गोमती को अपनाने के प्रस्ताव पर क्या उत्तर दिया?

उत्तर – देवी सिंह ने गोमती के अपनाने के प्रस्ताव पर यह उत्तर दिया की लड़ाई हो रही है, तोपें गोले उगल रही हैं, मार-काट मची है | जब शांति स्थापित हो जाएगी, तब इस प्रस्ताव पर विचार संभव है |

प्रश्न –  ‘विराटा की पद्मिनी’ उपन्यास की भाषा की तीन विशेषताएँ सोदाहरण बताइए।

उत्तर – विराटा की पदमिनी ‘ की भाषा- शैली की तीन विशेषताएं-

  1. ‘विराटा की पद्मिनी’ में हिंदी का प्रयोग किया गया है पर उसके बिच बुंदेली शब्दों का समावेश है जिससे भाषा बहुत ही आकर्षक हो गई है।
  2. ‘विराटा की पद्मिनी ‘ की भाषा में ध्वनि मूलक और अर्थ मूलक आदि शैली के प्रयोग से मधुरता आ गई है।
  3. ‘विराटा की पदमिनी ‘ की भाषा उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों की सहायता से नवीन बन गई है।

प्रश्न –  कुंजर सिंह को अलीमर्दान की सहायता क्यों अच्छी नहीं लगी?

उत्तर – कुंजर सिंह को अलीमर्दान की सहायता अच्छी नहीं लागी। कुंजर सिंह नहीं चाहता था कि दिलीप नगर के गृह क्लेश में कोई विदेशी बाहरी ताकत दखलंदाजी करे और इसके बदले राज्य के किसी हिस्से पर अधिकार कर ले।

प्रश्न –  गोमती ने दुर्गा माँ से क्या वरदान माँगा?

उत्तर – गोमती ने दुर्गा से वरदान मांगा की ” कुंजर सिंह का नाश हो, अलीमर्दान मर्दित हो और दलीप नगर का राजा विजयी हो।

प्रश्न –  रहीम ने ‘ओछे’ व्यक्ति की क्या विशेषता बताई है ?

उत्तर – रहीम ने ‘ओछे’ व्यक्ति की तुलना एक शतरंज के प्यादे से की है | जब ओछे व्यक्ति को किन्ही कारणों से कोई पद या अधिक पैसे प्राप्त हो जाते है तो वह इतराने लगते हैं तथा घमंडी हो जाते है | जैसे प्यादा वजीर के समान बनते ही उसकी तरह टेड़ा-टेड़ा चलने लगता है | उसी प्रकार ‘ओछे व्यक्ति की चाल भी टेड़ी व घमंडी हो जाति है |

प्रश्न –  कवि राजेंद्र कठपुतली बने रहने को सुविधा क्यों कहते हैं ?

उत्तर – कवि राजेन्द्र कठपुतली बने रहने को सुविधा इसलिए कहते है, क्यूँकि मनुष्यउन्हें प्राप्त खुशियाँ और जीवन जीने के बने-बनाए रास्ते तभी उपलब्ध हो सकते हैं, जब हम दूसरों का कहा करते रहें, अपनी डोर दूसरों के हाथों में दे दें। हम ऐसा कभी भय के कारण किया करते है, कभी भौतिक सुखों के लालच में कभी नौकरी बचाने के लिए किया करते है, कभी केवल इसलिए कि हमें बड़ों के आदेश का पालन करना है। कुल मिलाकर ऐसा करने के पीछे हमारा विवेक नहीं कोई भय, लोभ या जीवन की रूढ़ियाँ ही होती हैं।

प्रश्न –  भरत को माँ के प्रति आक्रोश क्यों था ?

उत्तर – भरत को माँ के प्रति आक्रोश इसलिए था क्योंकि कैकयी ने राम और भारत के बीच अंतर डाल दिया था अर्थात राम को वनवास भेजने का वरदान माँगा था जिस कारण भारत बहुत शर्मिंदा थे उनको अपनी माँ  पर क्रोध आ रहा था | 

प्रश्न –  भारतेंदु युग अथवा द्विवेदी युग की दो काव्यगत विशेषताएँ बताइए ।

उत्तर –

भारतेंदु युग की काव्यगत विशेषताएँ

  1. राष्ट्रीयता की भावना – भारतेंदु युग के कवियों ने देश-प्रेम की रचनाओं के माध्यम से जन-मानस मे राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण किया।
  2. सामाजिक चेतना का विकास – भारतेंदु युग काव्य सामाजिक चेतना का काव्य है। इस युग के कवियों ने समाज मे व्याप्त अंधविश्वासों एवं सामाजिक रूढ़ियों को दूर करने हेतु कविताएँ लिखीं।
  3. हास्य व्यंग्य – हास्य व्यंग्य शैली को माध्यम बनाकर पश्चिमी सभ्यता, विदेशी शासन तथा सामाजिक अंधविश्वासों पर करारे व्यंग प्रहार किएगए।
  4. अंग्रेजी शिक्षा का विरोध – भारतेंदु युगीन कवियों ने अंग्रेजी भाषा तथा अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के प्रति अपना विरोध कविताओं मे प्रकट किया है।

द्विवेदी युग की काव्यगत विशेषताएँ

  1. मानव प्रेम – द्विवेदी युगीन कविताओं मे मानव मात्र के प्रति प्रेम की भावना विशेष रूप से मिलती है।
  2. प्रकृति-चित्रण इस युग के कवियों ने प्रकृति के अत्यंत रमणीय चित्र खींचे है। प्रकृति का स्वतन्त्र रूप मे मनोहारी चित्रण मिलता है।
  3. खड़ी-बोली का परिनिष्ठित रूप खड़ी बोली मे काव्य रचना द्विवेदी युग की सबसे महत्वपूर्ण है। खड़ी बोली हिन्दी को सरल, सुबोध तथा व्याकरण सम्मत परिनिष्ठित स्वरूप प्रदान किया।
  4. अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों का विरोध – इस काल की कविताओं मे सामाजिक अंध विश्वासों और रूढ़ियों पर तीखे प्रहार किए गए।

प्रश्न –  शुक्ल जी के अनुसार क्रोध से क्या-क्या हानियाँ हो सकती हैं ?

उतर – शुक्ल जी के अनुसार क्रोध के कारण कभी-कभी व्यक्ति इतना उग्र रूप धारण कर लेता है कि वह दुख देने वाले की शक्ति व उसका नतीजा नहीं सोचता। उचित अनुचित का ध्यान नहीं रखता ऐसे में क्रोध करने वाले की बहुत हानि होती हो जाती है | क्रोध आने पर मस्तिष्क में ऐसे रासायनिक तत्व बनते हैं, जिनका शरीर के साथ-साथ मेंटल हेल्थ पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। जो लोग ज्यादा गुस्सा करते हैं उनमें ब्रेन स्ट्रोक की संभावना ज्यादा होती है।

प्रश्न –  “भरत का भ्रातृप्रेम” कविता के आधार पर बताइए कि भरत जब बोलने के लिए खड़े हो जाते हैं, तो उनकी आँखें क्यों डबडबा जाती हैं?

उत्तर – भरत जब सभा में बोलने को कहा जाता है तब वो रोने लगते हैं और कहते हैं कि ऋषि मुनि ने सब कुछ कह दिया अब उनके कहने के लिए कुछ बचा नहीं है। मैं अपने भाई का स्वभाव जानता हूँ, वे कभी हमको दुखी नहीं देख सकते |

प्रश्न –  कठपुतली बना मनुष्य दूसरों को भी कठपुतली बनाना क्यों चाहता है?

उत्तर – कठपुतली बना हुआ मनुष्य दूसरों को कठपुतली इसलिए बनाना चाहता है, क्योंकि वह इसे किसी संक्रामक रोग की तरह फैलाना चाहता है। कठपुतली बना मनुष्य जो खुद पराधीन है वह दूसरों को स्वाधीन नहीं देख सकता। इसीलिए वह दूसरों को भी कठपुतली के समान बनाना चाहता है।

प्रश्न –  परिचय इतना, इतिहास यही कथन से महादेवी का क्या तात्पर्य है? ‘मैं नीर भरी दुख की बदली’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

अथवा

 “मैं नीर भरी दुःख की बदली’ कविता में “परिचय इतना इतिहास यही” से महादेवी वर्मा जी का क्या तात्पर्य है ?

उत्तर – इस विस्तृत जग में मेरा कोई नहीं है। मेरा इतिहास यही है कि मैं कल थी और आज नहीं हूँ। कवयित्री ने भौतिक जगत की नश्वरता पर ध्यान आकर्षित किया है। उनका कहना है कि इस नश्वर संसार के किसी भी कोने में मेरा अपना कोई नहीं है। मेरा अस्तित्व कल था लेकिन आज नहीं है। कहने का सूक्ष्म भाव यह है कि मानव इस धराधाम पर आकर अपनी यशस्वी कृर्तियों के बल पर ही अमर बन सकता है। इतिहास रच सकता है। इन पंक्तियों में भौतिक और आध्यात्मिक जगत का यथार्थता का चित्रण करते हुए महादेवी जी ने अपना मंतव्य प्रकट किया है। इस प्रकार कर्म की ही प्रधानता है।

प्रश्न –  ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता का केंद्रीय भाव लगभग 35-35 शब्दों में लिखिए।

उतर – ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता सुप्रसिद्ध कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित। मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा। वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी। उसके हाथ में एक भारी हथौड़ा था, जिससे वह बार-बार पत्थर पर प्रहार कर रही थी। उसके सामने ही सघन वृक्षों की पंक्ति, अट्टालिकाएं, भवन तथा परकोटे वाली कोठियाँ विद्यमान थीं।

प्रश्न –  राजेन्द्र उपाध्याय की ‘कठपुतली’ कविता का केंद्रीय भाव लगभग 30-40 शब्दों में लिखिए ।

उत्तर – कठपुतली का मूलभाव है कि हमें अपनी स्वतंत्रता के लिए सचेत रहना चाहिए। कवि कठपुतली के माध्यम से यह बात व्यक्त करता है। कठपुतली दूसरों की अंगुलियों पर नाचती है। इससे उसका अपना कुछ नहीं रहता। उसके हाव-भाव यहाँ तक की उसके चलने फिरने तक को अंगुलियाँ तय करती है। ऐसे में कठपुतली दूसरे पर निर्भर है। लेखक यही स्थिति एक गुलाम व्यक्ति की दर्शाना चाहता है। उसके अनुसार गुलामी की जंजीर को तोड़ना आवश्यक है। हमें जहाँ लगे कि दूसरा हमारी आज़ादी का हनन कर रहा है वहाँ तुरंत आवाज़ उठाए। इससे और लोग भी सचेत हो जाएंगे और हम आज़ाद रह पाएंगे।

प्रश्न –  ‘मैं नीर भरी दुःख की बदली’ कविता का केंद्रीय भाव लगभग 35-35 शब्दों में लिखिए।

उत्तर – यह गीत एक बदली पर आधारित है। पहली ही पंक्ति में बदली अपना सीधा परिचय दे देती है-‘मैं नीर भरी दुख की बदली’, इसमें ‘मैं’ को समझ लेने के बाद कविता समझना सरल हो जाएगा। प्रथम तो स्पष्ट है कि ‘बदली’ अपना परिचय दे रही है, तो ‘बदली’ ही ‘मैं’ है। वह ‘नीर भरी’ है; क्योंकि वही जल बरसाती है। वाक्य का स्त्रीलिंग में होना और बदली के साथ ‘दुख की’ पद यह संकेत भी देता है कि ‘मैं’ स्वयं कवयित्री के लिए या किसी वेदना-ग्रस्त नारी के लिए भी हो सकता है। इस प्रकार पूरी कविता के अर्थ दो समानांतर स्तरों पर लगाया जा सकता है। पहला-जलपूर्ण उमड़ते-घुमड़ते बादल और दूसरा-दुखी और वेदनाग्रस्त नारी।

प्रश्न –  ‘परशुराम के उपदेश’ कविता का केंद्रीय भाव 30-40 शब्दों में स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – ‘परशुराम के उपदेश’ कविता  ‘रामधारी सिंह दिनकर’ द्वारा रचित एक ओजस्वीपूर्ण कविता है। इस कविता के द्वारा कवि रामधारी सिंह दिनकर ने देशवासियों के मन में चेतना और वीरता का भाव भरने की चेष्टा की है। इस कविता का मूल भाव अन्याय और अत्याचार के प्रति आवाज उठाने के लिए प्रेरित करना है।

कवि दिनकर जी कहते हैं कि जो लोग अत्याचार और अन्यया को सहते हैं, वह कायर हैं। अपने प्रति हो रहे अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाना मानव का धर्म है। वही मानव का मूल स्वभाव है। जिसकी भुजाओं में बल होता है, वही वीर कहलाता है।

कवि देशवासियों का आह्वान करते हुए अपनी शक्ति पहचानने के लिए कह रहे हैं, ताकि वह एकजुट हो जाएं और देश पर आने वाले सभी तरह की विपत्तियों और शत्रुओं से निपटें। कवि ने इस कविता के माध्यम से देशवासियों में वीरता, चेतना, साहस, ओजस्वता का भाव बनने की चेष्टा की है।

प्रश्न –  भक्तिकालीन साहित्य की कोई दो विशेषताएँ लिखिए ।

उत्तर – हिंदी साहित्य के इतिहास में भक्तिकाल सर्वश्रेष्ठ काल माना गया है, इसके नाम से स्पष्ट है कि इस काल में भक्तिपरक रचनाओं की प्रधानता रही। इस काल की विभिन्न विशेषताओं का अवलोकन करते हुए विद्वानों ने इसे ‘स्वर्णकाल’ की संज्ञा दी।

भक्तिकालीन साहित्य की विशेषताएँ

  1. गुरु की महत्ता – भक्तिकाल में गुरु की महत्ता सर्वोपरि मानी गई है। गुरु को इन्होंने मार्गदर्शक मानते हुए परमात्मा से भी बढ़कर माना। यह सत्य है कि जीवन के विभिन्न संघर्षों से उद्धार पाने का  मारगं गुरु ने ही बताया है और गुरु ही साधक को परमात्मा के द्वार तक पहुँचाता है।
  2. स्वान्तः सुखाय- परजनहिताय रचना –  भक्तिकाल के कवियों ने जो भी रचनाएँ कीं, वे स्वांत:सुखाय (अपने अंत:करण के सुख के लिए) थीं। यद्यपि ये रचनाएँ उन्होंने अपने सुख के लिए लिखी थीं , परंतु ये दूसरों के लिए भी कल्याणकारी सिद्ध हुईं। उनके ग्रंथों में दिए गए धर्म उपदेश, नीति के सिद्धांत, भगवान के विविध क्रियाकलाप सभी को सदमार्ग की ओर प्रेरित करने वाले सिद्ध हुए। इसलिए ये रचनाएँ स्वांत:सुखाय होते हुए भी परजनहिताय थीं।

प्रश्न –  पठित पाठ के आधार पर राजेंद्र यादव अथवा रामचंद्र शुक्ल की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर –

राजेंद्र यादव की भाषा शैली की विशेषताएं –

  1. राजेंद्र यादव की रचना “अनपढ बनाये रखने की साजिश” की दृष्टि से आदर्श संपादकीय नहीं है। यह बहुत विस्तार लिए है। लेकिन इसकी इनकी भाषा सुबोध , ओजपूर्ण तथा चुटीली है।
  2. इसमें व्यंग्य का भी जोरदार ढंग से प्रयोग किया गया है। भाषा प्रवाह पूर्ण है। उर्दू एवं अंग्रेजी के शब्दों का खुलकर प्रयोग हुआ है।

रामचंद्र शुक्ल की भाषा-शैली की विशेषताएँ-

  1. आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा तत्सम प्रधान है। वे विषय के अनुकूल संस्कृत तत्सम शब्दों का प्रयोग करते है
  2. आचार्य शुक्ल विषय का विवेचन करते हुए मुहावरों का प्रयोग करते है। इससे उनकी भाषा में प्रभावोत्पादकता आ जाती है।

प्रश्न –  सुफ़ी काव्य अथवा संत काव्य की दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर –

सूफी काव्य की विशेषताएं-

  1. निर्गुण ईश्वर में विश्वास सूफी कवि मुसलमान थे। वे एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे। सूफी काव्यों में ईश्वर के एक होने निर्माण और निराकार होने के उल्लेख बार-बार मिलते हैं।
  2. शैतान को बाधक मानना सूफी कवियो ने प्रिय-प्राप्ति के मार्ग में बाधक तत्त्व के रूप में शैतान की कल्पना की है। उनका विश्वास है कि खुदा ने शैतान को साधक की परीक्षा लेने के लिए बनाया है। जो साधक उस परीक्षा मे खरा उतरता है। वही परमात्मा से मिल सकता है। यह शैतान आत्मा और परमात्मा के मिलन में बाधा डालता है।

संत काव्य की दो विशेषताएँ

  1. गुरु का महत्वसंत काव्य के सभी कवियों ने गुरु के महत्व को प्रतिपादित करते हुए उसे ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया है क्योंकि ईश्वर तक पहुंचाने वाला गुरु ही है। गुरु ही ज्ञान के द्वारा ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताता है ।
  2. रूढ़ियों एवं आडंबरों का विरोध  – संत कवियों ने समाज में व्याप्त रूढ़ियों, मिथ्या आडम्बरों तथा अंधविश्वासों का घोर विरोध किया है। उनका लक्ष्य सदा समाज सुधार रहा है उस समय के प्रमुख धर्म हिंदू और इस्लाम थे। इन दोनों धर्मों में अनेक मिथ्या बाह्याचार प्रचलित हो चले थे। संत कवियों ने सब का खंडन किया है।

प्रश्न –  छायावादी काव्य अथवा प्रगतिवादी काव्य की दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर –

छायावादी काव्य की विशेषताएँ –

  1. प्रकृति का मानवीकरण :- प्रगति पर मानव व्यक्तित्व का आरोप छायावादी की मुख्य विशेषता है। छायावादी कवियों ने प्रकृति को चेतन मानते हुए का सजीव चित्रण किया है।
  2. कल्पना की प्रधानता :- छायावादी काव्य में कल्पना को प्रधानता दी गई है। छायावादी कवियों ने यथार्थ की अपेक्षा कल्पना को काव्य में अधिक अपनाया है।

प्रगतिवादी काव्य की विशेषताएँ –

  1. रूढ़ियों का विरोध – प्रगतिवादी कवियों का ईश्वर की सत्ता, आत्मा, परमात्मा, परलोक, भाग्यवाद, धर्म, स्वर्ग, नरक आदि पर विश्वास नहीं है। उनकी दृष्टि में मानव की महत्ता सर्वोपरि है। उनके लिए धर्म एक अफीम का नशा है। प्रगतिवादी कवियों ने अंधविश्वास और रूढ़ियों पर गहरा प्रहार किया है।
  2. क्रांति की भावना – प्रगतिवादी कवियों ने शोषित वर्गों के प्रति सहानुभूति दर्शाने तथा प्राचीन परम्पराओं को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए क्रान्ति का आह्वान किया है। वे समानता स्थापित करने के लिए समाज में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहते हैं।

प्रश्न –  हरिशंकर परसाई‘ अथवा कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर –

हरिशंकर परसाई‘ की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ

  1. व्यंग आधारित रचनाएँ – हरिशंकर परसाई की रचनाओं की भाषा व्यंग प्रधान भाषा होती थी उन्होंने अपने रचनाओं में सामान्य भाषा का प्रयोग किया है | हरिशंकर परसाई ने अपनी रचनाओं में व्यंग के माध्यम से समाज में फैले कुप्रथा कुरीतियों और सामाजिक पाखंडों को दूर करने का प्रयास किया उन्होंने कई कहानी संग्रह व्यंग संग्रह और उपन्यास लिखे हैं |
  2. निबंध लेखन शेली – परसाई जी ने जो भी काव्‍य लिखे हैं जो भी निबंध कहानी संग्रह उपन्यास लिखे हैं उनकी एक खास विशेषता है वह अपने निबंध उपन्यास कहानी के माध्यम से समाज में राजनीति में जो भ्रष्टाचार और शोषण फैला हुआ है उसके खिलाफ उन्होंने करारा व्यंग किया है उनका मानना था कि जब तक समाज के तौर-तरीकों समाज के रहन-सहन का अनुभव नहीं हो सकता है तब तक कोई भी व्यक्ति वास्तविक साहित्य लिख नहीं सकता है अपनी व्‍यंग के माध्यम से ही सभी सामाजिक बुराइयों को दूर करना चाहते थे |

कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ की भाषा-शैली की दो विशेषताएँ

  1. प्रश्नोत्तरी शैली: लेखक अपनी बात सामान्य ढंग से आरंभ करता है और कठिन और बोझिल शब्दों का प्रयोग किए बिना मंतव्य स्पष्ट कर देता है। एक-एक दृश्य खोजकर वह प्रश्न उठाता है और फिर उत्तर खोजता है। जब से कहीं पर उचित उत्तर नहीं मिलता तो पुनः प्रश्न पर प्रश्न करता है।

उदाहरण देखिए-“ जो न हिलता है न झुकता है वह ही वीर पुरुष है। उसी समय उसका स्थान उस दूँठ की ओर जाता है जो न हिलता है और न झुकता है। परंतु वह तो वीर नहीं है उसमें जान ही नहीं तो वीर कैसा!”

  1. काव्यात्मक शैली: काव्यात्मक भाषा मिश्र जी के विचारों का सिलसिला शुरू रहता है जिसमें चिंतन का प्राधान्य है। वे सरल काव्यात्मक भाषा का भी प्रयोग करते हैं-पलंग पर लेटे लेटे वह यों दीखता कि जैसे कुशल समाचार पूछने को आया कोई मेरा ही मित्र हो।”

प्रश्न –  कुछ प्रमुख पारिभाषिक शब्द- टेलीप्रिंटर, वर्गीकृत विज्ञापन, कयामुख, ई-मेल, दैनिक, ब्रेकिंग न्यूज़, पीत पत्रकारिता?

उत्तर

  1. टेलीप्रिंटर- दूरदराज के इलाको से तेजी के साथ समाचार भेजने की टाइपराइटर जैसी मशीन।
  2. वर्गीकृत विज्ञापन- विज्ञापन जो विषयो के अनुसार बांटकर छापे जाते है। जैसे- आवश्यकता है, वैवाहिक विज्ञापन, मित्र बनाये, टेंडर नोटिस आदि।
  3. कथामुख- किसी समाचार के प्रारंभिक अंश को कथामुख कहते है।
  4. ई-मेल – इंटरनेट से संचालित होने वाली एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है ई-मेल । ई-मेल का अर्थ है इलेक्ट्रॉनिक मेल। इसके माध्यम से किसी भी चिट्ठी ना संदेश को बिजली की गति के साथ संबंधित व्यक्ति को दुनिआ के किसी भी कोने में पहुंचाया जा सकता है।
  5. दैनिक वह समाचार पत्र जो प्रतिदिन प्रकाशित होता है।
  6. ब्रेकिंग न्यूज-अचानक उभर कर आई बड़ी खबर।
  7. पीत पत्रकारिता-पीत पत्रकारिता उस पत्रकारिता को कहते हैं जिसमें सही समाचारों की उपेक्षा करके सनसनी फैलाने वाले समाचार या ध्यान-खींचने वाले शीर्षकों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। इससे समाचारपत्रों की बिक्री बढ़ाने का घटिया तरीका माना जाता है। पीत पत्रकारिता में समाचारों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है।

प्रश्न –  फ़ीचर किसे कहते हैं और इसे कैसे प्रस्तुत किया जाता है ?

उत्तर –  पत्रकारिता के क्षेत्र में फीचर किसी विषय पर आधारित सृजनात्मक एवं व्यवस्थित लेखन होता है, जिसका उद्देश्य पाठकों के मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें जागरूक करके उन्हें शिक्षित करना होता है।

फीचर समाचारों से भिन्न होता है क्योंकि समाचार में शब्दों की मर्यादा होती है और समाचार ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया जाता है। जबकि फीचर में इसको लिखने वाला लेखक अपनी राय और दृष्टिकोण के हिसाब से लिखता है। इसमें वह अपने विचार और भावनाएं प्रस्तुत कर सकता है। फीचर में शब्दों की कोई निश्चित सीमा नहीं होती और यह समाचारों से बड़े होते हैं।

प्रश्न –  समाचार प्राप्त करने के मुख्य स्रोत बताइए ।

उत्तर – अनेक व्यक्तियों की अभिरूचि जिन बात में होती है वह समाचार है। सर्वश्रेष्ठ समाचार वह है, जिसमें बहुसंख्यक लोगों की अधिकतम रूचि हो।

समाचार के स्रोत

  1. सरकारी स्रोत (Government sources)
  2. पुलिस विभाग एवं अदालत (Police Department and Court)
  3. व्यक्तिगत स्रोत (Personal source)
  4. अस्पताल (Hospital)
  5. साक्षात्कार (Interview)

प्रश्न –  सूचना प्रौद्योगिकी के कोई दो लाभ बताइए ।

उत्तर –

  1. शिक्षा का प्रचार-प्रसार सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से शिक्षा के प्रचार-प्रसार में बहुत सहायता मिली है। दूर-दराज़ के गाँवों में, जहाँ शिक्षा का स्तर बहुत नीचे था, वहाँ के लोगों में शिक्षा के प्रति रुचि पैदा करने और उनके भीतर फैली कुरीतियों तथा अंधविश्वासों को दूर करने के लिए शिक्षा का प्रचार-प्रसार सरकार के लिए चुनौती बना हुआ था। संचार माध्यमों, विशेषकर रेडियो तथा दूरदर्शन के द्वारा आसानी से इस समस्या का हल ढूँढ़ लिया गया है।
  2. लोगों के बीच बढ़ती मनोरंजन की आवश्यकता की पूर्ति  संचार माध्यमों ने आदमी की मनोरंजन की बढ़ती हुई आवश्यकता को पूरा किया है। अब साहित्य, संगीत, नाटक, कला, फिल्में, धारावाहिक, खेल, आदि विभिन्न मनोरंजन के क्षेत्र संचार माध्यमों के ज़रिए आदमी के सामने फैले पड़े हैं। विशेषकर दूरदर्शन तथा रेडियो ने जनसाधारण के मनोरंजन की आवश्यकता की पूर्ति की है। साथ ही उसमें मनोरंजन के प्रति रुचि का परिष्कार भी हुआ है। कई लोग दूरदर्शन द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले मनोरंजन की निंदा भी करते हैं तथा मनोरंजन के गिरते हुए स्तर पर चिंता व्यक्त करते हैं। किंतु संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि अब हर स्तर तथा रुचि के लोगों के लिए मनोरंजन संचार माध्यमों द्वारा उपलब्ध कराए जाते हैं।

प्रश्न –  अनुवाद में संदर्भ का क्या महत्व है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर – जब किसी भाषा में संचार की बात आती है, तो संदर्भ वास्तव में महत्वपूर्ण होता है। अच्छे अनुवाद के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने अनुवादकों को हमेशा आपके द्वारा प्रदान किए गए पाठ के संदर्भ से अवगत कराएं। उदाहरण के रूप में द टू रॉनीज़ जहां कॉमेडी में अंग्रेजी के उपयोग और संदर्भ को समझने में महारत हासिल है। प्रसिद्ध चार मोमबत्तियों का स्केच केवल संदर्भ के बारे में है।

यह इस बात का स्पष्ट उदाहरण है कि अनुवाद करते समय संदर्भ कितना महत्वपूर्ण है। मशीनी अनुवाद – इंटरनेट पर मुफ्त अनुवाद – संदर्भ की पहचान करने में असमर्थता के कारण अभी भी खराब अनुवाद देता है। यही कारण है कि मशीनी अनुवाद द्वारा की जाने वाली अधिकांश गलतियाँ इतनी मज़ेदार होती हैं।

प्रश्न –  ‘अखबार लोकतंत्र की रक्षा करते हैं।’ कैसे?

उत्तर – ‘अख़बार लोकतंत्र की रक्षा करता है |’ अखबार ही सरकार की शक्तियों पर प्रतिबंध लगाता है, सरकार को तानाशाही होने से रोकता है |   

प्रश्न –  प्रिंट मीडिया में कंप्यूटर का उपयोग बताइए।

उत्तर – प्रिंट मीडिया में कंप्यूटर का योगदान-पहले समाचारों की कंपोजिंग लेटर कंपोजिंग से की जाती थी। लेकिन कंप्यूटर के आने से यह काम कंप्यूटर से किया जाने लगा। अब सुंदर अक्षरों को कंप्यूटर से टाइप कर उसका नेगेटिव तैयार किया जाता है और उसे सीधे कागज़ पर छाप दिया जाता है। अब समाचारों के ढेर में से बहुत आसानी से समाचारों की छंटनी कर दी जाती है। चित्रों को कंप्यूटर से जुड़े स्कैनर से उसकी मेमोरी में डाल दिया जाता है।

समाचारों को कंपोज कर दिया जाता है और उसकी स्क्रीन पर अखबार के नाप के आकार से व्यवस्थित कर दिया जाता है। आवश्यकता के हिसाब से चित्रों को भी व्यवस्थित कर लिया जाता है। इस प्रकार समाचारों के कटिंग और पेस्टिंग के झंझट से मुक्ति मिल जाती है। फिर उसको पेज के हिसाब से सीधे कैमरे में प्रेषित कर दिया जाता है | घंटे भर में अखबार की लाखों कॉपियाँ छपकर लोगों तक पहुँचाने के लिए तैयार हो जाती हैं।

प्रश्न –  समाचारों का चुनाव करते समय किन बातों का ध्यान रखा जाता है?

उत्तर – समाचार का चुनाव करते समय सबसे पहले यह देखना चाहिए कि उस समाचार में लोगों की कितनी दिलचस्पी है। जितनी घटनाएँ आप सोच रहे हैं, सभी समाचार नहीं है। कई बार घटना समाचार होने पर भी इसलिए छोड़ दी जाती हैं कि उनसे अधिक महत्त्व के समाचार जा जाते हैं। अगर खराब फल बेच रहे छाबड़ी वाले को पुलिस उठाकर बाहर फेंक देती है तो वह आपकी नज़र में खबर हो सकती है लेकिन अख़बार वालों की नज़र में नहीं। क्योंकि वे इस घटना को पुलिस की ड्यूटी मानते हैं। लेकिन अगर वहाँ दूसरे छाबड़ी वाले आकर उत्पात मचाते है और इस बीच प्रशासन और उनके बीच इतना कुछ हो जाए कि दोनों पक्षों की राय प्रकाशित करना आवश्यक हो जाए, तब वह समाचार का रूप ग्रहण कर लेती है।

प्रश्न –  चौथा खंभा किसे कहते हैं? इस पर प्रकाश डालिए।

उत्तर – प्रेस यानी कि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा ही विभिन्न विषयों पर सरकारी नीतियों के अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, जन कल्याण एवं विकास की सरकारी योजनाओं की जानकारी आम जनता तक तथा जनता की आवश्यकताएं, समस्याएं और अपेक्षाएं सरकार तक पहुँचती हैं । मीडिया ही जनता को जागरूक, भ्रमित अथवा विद्रोही बना देती है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.